और ब्लॉक अनब्लॉक हो गया!
सुधा और सोमेश का आज फिर मिलन हो गया था. बीते कुछ दिनों की कड़वी-कसैली यादों को वे याद नहीं करना चाहते थे, पर यादों पर कब किसका बस चल पाया है!
“सोमेश की यह मजाल कि अकेले मेरी सहेली मधु से मिल पाए! और मैंने उसे ब्लॉक कर दिया था.” सुधा की सोच थी.
“जाने क्यों सुधा ने मुझे ब्लॉक कर दिया, एक बार मेरा कुसूर तो बताती!” सोमेश की सोच मुखर थी. “शायद उस दिन उसने मधु से बात करते हुए मुझे देख लिया होगा!”
“और मधुर-मधुर बातें करो मेरे, नहीं-नहीं अब वह मेरा नहीं है, सोमेश से.” यही सोचकर मैंने मधु को भी ब्लॉक कर दिया था.
“ब्लॉक करने से क्या होता है भला! प्यार थोड़े ही न ब्लॉक हो जाता है पगली! प्यार तो और बढ़ जाता है!”
“सोमेश को ब्लॉक तो कर दिया था, पर उसकी स्मृति कैसे ब्लॉक हो सकती थी! हर पल लगता था, सोमेश आ रहा है, सोमेश बुला रहा है, सोमेश फोन कर रहा है, ब्लॉक करने के बावजूद मैं बार-बार मोबाइल पर उसके संदेश देखने के लिए आतुर रहती!”
“वो समय कैसे भूल सकती थी सुधा, जब हम समुद्र किनारे वाली “स्नैक बार” की टेबिल पर आमने-सामने बैठकर एक दूसरे को मैसेज करते होते थे और मैसेज के बाद सामने वाले की मुखमुद्रा को निहारते रहते थे! वो भी क्या खूबसूरत दिन थे!”
“उस दिन नेहा मधु-सोमेश की अकस्मात हुई मुलाकात और वार्तालाप के बारे में न बताती तो पता नहीं यह ब्लॉक और कब तक चलता!”
“सच में नेहा का दिल से धन्यवाद करता हूं. मधु तो बस सुधा की तारीफ किए जा रही थी और “मेरी सुधा का मन बहुत कोमल है, उसको मसल मत देना.” पर समय को क्या कहें, अनजाने ही उसी पल उसका मन मसला गया! कितना तड़पी होगी सुधी मेरी याद में!”
“छोड़ो बीती बातें, अब तो ब्लॉक अनब्लॉक हो गया!” दोनों फिर समुद्र किनारे वाली “स्नैक बार” की टेबिल पर आमने-सामने बैठे एक दूसरे को मैसेज कर रहे थे और मैसेज के बाद सामने वाले की प्रतिक्रिया को निहार रहे थे!
और ब्लॉक अनब्लॉक हो गया!