भाषा-साहित्य

विवेकानन्द आज भी प्रासंगिक- इनकी “राष्ट्र भाषा के प्रति निष्ठा वंदनीय है

हिंदी भाषा जो हमारे देश के जन-जन की भाषा बनी हुई है जो पूरे विश्व मे तीसरी सबसे बड़ी भाषा के रूप जानी जाती है जिसको हिंदुस्तान का धड़कन माना जाता है, जिसने हमारे हिंदुस्तान के निवासियों की पहचान बनाई है, जिसने हमारे देश को पूरे विश्व में  ज्ञान,विज्ञान,धर्म-आस्था-भक्ति-वैराग्य और जोतिष,कला,मन्त्र-तंत्र-यंत्र के क्षेत्र में गुरु के रूप स्वीकार किया गया है।जिस हिंदी के बल पर हमारे देश के महापुरुष बापू,गौतम,विवेकानंद आदि ने अपने विचार अभिव्यक्ति को पूरे विश्व पटल पर रखा औऱ ये मानने पर मजबूर कर दिया कि यदि किसी भाषा मे दम है तो वह है हमारी हिंदी भाषा। जिस भाषा की अभिव्यक्ति में सहजता है सुगमता है,सरलता है,रोचकता है,सुंदरता है,शालीनता है, आत्मियता है, अपनापन है,।
इसीलिए तो स्वामी विवेकानन्द जी ने शिकागो अमेरिका के धर्म सम्मेलन में हिंदी भाषा का सबसे पहले अपने उद्बोधन में-“भाइयो और बहनों” कहकर पूरी दुनिया से आये धर्म गुरुओं से लेकर बड़े-बड़े वक्ता-प्रवक्ता विद्वान व्यक्तियो सहित पूरी सभा को मन्त्र मुग्ध और अचंभित कर दिया,पूरी सभा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा सभा के लोग आवाक रह गए,वाह-वाह!! करने लगे।विवेकानन्द जी हमारे देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे,इसके पहले उन्हें कोई पहचान नही रहा था,लेकिन जब उनका हिंदी भाषा मे धर्म पर व्याख्यान शुरू हुआ तो देखते ही देखते स्वामी जी और हमारा हिंदुस्तान विष्व पटल पर सूर्य की तरह जगमगाने लगा।ऐसा दम,हमारी हिंदी भाषा में ही देखने को मिलता है।ऐसी हिंदी भाषा को मैं नमन करता हु।हिंदी भाषा ही एक ऐसी भाषा है जिसमे एक मर्यादा है, स्नेह है,सम्मान है,हम की भावना है,जिसमे स्त्रीलिंग पुर्लिंग तथा “आप और हम” बहुवचन जैसे  सर्वजन हिताय की बात है।आज वर्तमान परिदृश्य पर नजर डाले तो हमे पता चलता है कि हिंदी का प्रचलन बहुत कम होती जा रही है, अंग्रेजी का चलन बढ़ता जा रहा है,हिंदी के उपयोग करने में लोगो को अपमानित महसूस होती है लेकिन अंग्रेजी के उपयोग करने में अपनी शान समझते हैं, यह हमारे देश के लिए विडम्बना है।हमारी हिंदी का अपमान है।भाषा की सार्थकता उसकी उपयोगिता,उसके चलन में है।चलन में आने से ही भाषा समृद्ध होगी,पुष्पित होगी,पल्लवित होगी।हिंदी भाषा हमारी संस्कृति है, सभ्यता है,  धरोहर है,हमारे देश की शान और पहचान है।हमारे संविधान में इसे राज भाषा के रूप में 14 सितम्बर 1949 को भाग-17 अनुच्छेद-342 में अंगीकार किया गया।इसी की याद में प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।जो हम सब हिंदुस्तानियों के लिए गर्व,स्वाभिमान और खुशी की बात है। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारी अपनी राज भाषा है।पर यह एक आधिकारिक रूप से शामिल किया गया है।ऐसे 22 भाषाएं हैं,जिनको संविधान ने आधिकारिक रूप से जगह दी है।इसमें भारत सरकार यह भी व्यवस्था की है की वह किसी भी राज भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में चुन सकती है।पर दुख की बात यह है की आजादी के 75 सालों बाद जब हम “आजादी का अमृत महोत्सव” मना रहे है तब भी भारतीय संविधान में भारत की कोई राष्ट्र भाषा नही है।अब समय आ गया है की हम अपनी राष्ट्र भाषा के लिए पुरजोर प्रयास करें।प्रयास का तात्पर्य यह है की हम अधिक से अधिक संख्या में हिंदी का भरपूर उपयोग करें।तभी यह समृद्ध हो पाएगी। इसके लिए हमेशा सोचना चाहिए,इस पर गहन चिंतन और मनन करना चाहिए।इसके मान-सम्मान को अक्षुण बनाये रखने के लिए शासन-प्रशासन सहित आम जन मानस को हमेशा प्रयास करना चाहिए।
और आजादी के बाद उस दिन को याद करना चाहिए जिस दिन को यह तय किया गया था की जब तक हिंदी में काम शुरू नही हो जाता अंग्रेजी में काम किया जाएगा।पर ऐसा नहीं हो पाया।और तब से लेकर आज तक वही अंग्रेजी में ही काम काज चल रहा है।हमारी हिंदी वहीं के वहीं रह गई।इस पर हमे गंभीरता से सोचना चाहिए।

— अशोक  पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578