कविता

इंटरनेट का पेज

मेरी हसरत है
कि
मैं इंटरनेट का पेज बन जाऊं.

इंटरनेट का पेज
दिखता है छोटा-सा
पर प्रयोग करते-करते
हो जाता है बहुत बड़ा-सा
चाहो तो उस पर
लिख सकते हो उपन्यास भी
बदल-मिटा सकते हो
पसंद न आए तो वाक्य-विन्यास भी
रबर की जरूरत नहीं
मिटा दो तो कोई चिह्न अंकित नहीं
अपना लिखा बार-बार लगातार
बदल सकते हो
कोई ग़म नहीं
जितनी बार चाहो
कॉपी-पेस्ट करलो
इंटरनेट का पेज
शक्तिशाली है बेदम नहीं.

मेरा दिल भी
भले ही दिखे छोटा-सा
काम ऐसे कर जाऊं
जैसे हो बड़ा-सा
कोई बुरा कहे ग़म न हो
कोई भला कहे मन में अहं न हो
कोई संशय कोई भ्रम न हो
छोटों के प्रति प्यार,
बड़ों के प्रति सम्मान
मेरी ओर से कभी कम न हो
क्रोध से रह सकूं दूर
इंटरनेट के पेज की तरह
मुझमें न हो तनिक भी गुरूर
उसकी तरह निर्लेप रह सकूं
तो पा सकता हूं सबकी प्रीति
सफलता भी मिल सकती जुरूर.

इंटरनेट का पेज बन जाऊं,
सब कुछ अपने में समा पाऊं,
निर्लिप्त-निर्विकार-निरपेक्ष बनकर,
सबका प्यार कमा पाऊं,
सबका प्यार कमा पाऊं,
सबका प्यार कमा पाऊं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244