लघुकथा

धैर्य का दरवाजा

“पढ़ाई में पास तो हो जाता था, पर नंबर कम आने के कारण मनचाहा विषय और कॉलेज न मिलने के साथ सबके ताने!” क्या यही मेरी नियति है! सोमेश अक्सर सोचा करता और उदास हो जाता.
“मामूली नौकरी मिली भी, लेकिन उसमें मन न लगना!” मेरे साथ ही यह होना था! उदासी अवसाद में परिवर्तित होती जा रही थी.
“एक बार पिताजी से धन लेकर और दूसरी बार बड़े भैय्या से राशि लेकर व्यवसाय जमाने के प्रयास में भी असफलता! मेरी किस्मत मुझे क्या ऐसे ही रंग दिखाएगी!” जिंदगी की तरह उसका मन भी बेरंग हो गया था.
माता-पिता प्यार से अनवरत प्रयास करते हुए सही समय की प्रतीक्षा करने की सलाह देते रहते, उसका मन स्वीकार नहीं कर पा रहा था.
बड़े भैय्या और शिक्षकों के समझाने के प्रयास भी कोई रंग न ला पाए थे.
आजकल आसमान में भले ही बादल नहीं उमड़-घुमड़ रहे थे, पर सोमेश के मन में बुरे विचारों की उमड़न-घुमड़न जारी थी.
“आज घर में कोई नहीं है, मैं कुछ भी करने, कहीं जाने को आजाद हूं!” सोमेश चाबियां उठाकर घर से बाहर निकलने को तैयार हो गया.
ताले बंद करते हुए उसने अनमने मन से लकड़ी का दरवाजा बंद करने का प्रयास किया. बारिश की वजह से बहुत दिनों से वह बंद ही नहीं हो रहा था. सिर्फ बाहर का जाली का दरवाजा बंद करके घर की सुरक्षा की भावना से ही संतुष्ट होना पड़ता था.
“अरे, आज यह दरवाजा आसानी से बंद हो गया! शायद बारिश का असर खत्म हो गया था!” वह हैरान था.
अंदर आकर वह अपने अस्त-व्यस्त कमरे को व्यवस्थित करने लगा.
घर का दरवाजा बंद होने लगा था, उसके धैर्य का दरवाजा खुल गया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244