मन हरण घनाक्षरी
मंद सुगंध पवन,
भरे आज प्रेम घन,
सघन घनघोर में,
व्यथा सुन लीजिए।
भरी चित उलझन,
प्रीत की कैसी लगन,
साँवरे सुन ले जरा,
प्रेम भर लीजिए।
प्रेम ध्वनि कल -कल,
भरी वसुधा कोमल,
प्रीत के तीखे ये तीर,
घाव भर लीजिए।
प्रीत ऐसी ही लगायें,
घाव गहरे हो जायें,
अन्तस्थ का पता चले,
मन मोह लीजिए।
— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ