कहानी

कहानी – अधूरी जिंदगानी

नाजों से पली थी रीना अपने मां-बाप के आंगन में , उसमें उसके मां-बाप के संस्कार कूट-कूट के भरे थे जैसे , मगरूरियत तो जैसे उसके खून में ही ना थी । सदैव अपने पिता की तरह हर जरूरत मंद के लिए आगे बड़ सेवा का योगदान देना यही तो उसके संस्कार , व्यक्तित्व थे जो सभी का दिल जीत लेते थे । बारह वर्ष की थी जब रीना उसकी चाची को पत्थरी के आपरेशन के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया उस बीच में रीना की मां घर की समस्त जिम्मेदारियां निभा रही थी तो घर में एक ही चिंता थी की चाची के पास अस्पताल में कौन रहेगा ? चाचा भी विदेश में रहते थे । रीना की मां ने रीना से कहा कि क्या तुम चाची की देखभाल कर सकती हो अस्पताल में रीना ने खुश होकर कहां हां , क्यों नहीं मां मैं चाची की देखभाल कर लूंगी बारह बरस की उम्र में ही रीना को पहली बार सेवा के मौके में अपनी चाची की ही गंदगी साफ करने का मौका मिला , क्यों कि चाचा हिल नहीं सकती थी उनका आपरेशन जो हुआ था ,  रीना बिना संकोच किये दिल से सेवा की चाची की थोड़ी भी घृणा नहीं आई उसके दिल में । फिर ना जाने कितनी बार रीना के शहर में ही आंखों के ऑपरेशन के कितने नि:शुल्क कैंप लगे जिसके अंतर्गत दूर दराज से लोग खबर पाते ही आते आंखों के मुफ्त इलाज़ का सुन और मुफ्त में अपनी आंखों की जांच करवा ऑपरेशन करवाते उनके आंखों पर ऑपरेशन के बाद सदैव पट्टी रहती थी ऐसे में मरीजों की सेवा के लिए भी तत्पर रीना रहती थी उनका मल तक साफ करना , हाथों से खाना खिलाना , समय पर दवा देना आदि समस्त सेवाएं रीना उन्हें वक्त दर्द देती थी वक्त गुजरता चला गया और रीना शादी के लायक हो गई शादी से पहले रीना इतनी सादगी भरी थी की उसे श्रृंगार करना तो पसंद ही नहीं था जब कभी कोई उसको छेड़ती सखियां कि रीना थोड़ा तो श्रृंगार करा कर , तू सुंदर लगेगी । पर रीना सदैव एक ही पलट कर जवाब देती कि श्रृंगार का शौक मुझे भी है परंतु में श्रृंगार अपनी शादी के बाद अपने पिया के सामने ही करूंगी , खूब हाथों में चूड़ियां पहनुंगी , वह दिन भी आ गया जब रीना की धूमधाम से शादी उसके मां-पिता ने समपन्न परिवार में करवाई , रीना के ख्वाबों अनुरूप ही उसे वर मिला , परंतु उसे सादगी भरी रीना ही पसंद थी रीना कभी भी साड़ी नहीं पहनती थी क्योंकि उसके पति को साड़ियां पसंद नहीं थी अपने पति की खुशी अनुरूप रीना ने हर प्रकार से खुद को सांचे में ढालना सीख लिया था । शादी के कुछ माह बाद ही रीना गर्भवती हो गई और जल्द ही उसे एक बेटे की सौगात प्राप्त हुई जिंदगी बहुत ही खुशियों से कट रही थी अपनी औलाद के साथ रीना और उसके पति बहुत खुश थे । पति की आय अधिक ना होने के कारण रीना ने हर वक्त अपने पति का साथ दिया जहां मायके में रीना ने खूब सारा धन दौलत देखा था वही शादी के बाद आर्थिक परिस्थितियां चाहे ठीक ना रही हो परंतु खुशियां बहुत थी रीना ने समय दर समय अपने पति का सदैव साथ दिया उसने अपने पति का हाथ बटाते हुए घर में ही अपना व्यवसाय शुरू कर लिया और दोनों पति-पत्नी मिलकर कमाने लगे बड़े बेटे की हर एक इच्छा को पूरा करते हुए उसकी शिक्षा का भी समस्त ध्यान रख रहे थे । रीना ने पूरी तरह से दिवालिया हो गए अपने पति का पूरा साथ दिया घर का पूरा काम करने के बाद वह रात-रात अपने पति का व्यवसाय में सहयोग करते हुए माल को पन्नियों में पैक करना , उन पर कीमत का लेबल लगाना , माल बांधना  इत्यादि काम में हाथ बंटाते -बंटाते कभी-कभी तो सुबह के 4:00 भी बज जाते थे परंतु वह खुशी-खुशी सहयोग करती थी ताकि पुनः व्यवसाय खड़ा किया जा सके । देखते ही देखते बेटा उनका अब दस साल का होने ही वाला था की रीना को पता चला कि वह फिर से मां बनने वाली है रीना का खुशी का कोई ठिकाना ना रहा । रीना ने गर्भवती होने के बावजूद भी अपना व्यवसाय शुरू रखा जब 9 माह बाद उसे पुनः एक बार बेटा हुआ तो परिवार खुशी से फूला नहीं समा रहा था । इन 9 माह के बीच रीना चिड़चिड़ी सी हो गई थी , जैसा कि अक्सर गर्भवती महिलाओं के साथ होता है शारीरिक कमजोरी , मानसिक थकावट और ऊपर से व्यवसाय की भाग दौड़ ने रीना को बहुत ज्यादा थका दिया था , इस बीच यदि रीना का पति भी रीना से कोई उम्मीद भी करता तो रीना उसके उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही थी रीना या तो अपना शरीर देख सकती थी अपने आने वाले बच्चे की सुरक्षा को ध्यान रखते हुए या तो घर की समस्त जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकती थी । रीना के पति रीना से खिन्न रहने लगे । इस बीच में रीना के पति की दोस्ती एक महिला से हो गई वह महिला जो उनकी दुकान से कपड़ा खरीदती थी और अपनी दुकान पर बेचा करती थी उसका नाम गोरी थी जो कि रीना के ही समाज की थी परंतु उसने दूसरी जात में बहुत ही सुंदर और अमीर लड़का जिसका नाम राहुल था उससे शादी की , गोरी और राहुल की अपनी एक बेटी भी है  रीना के पति और गोरी के इस दोस्ती के बीच में रीना के पति ने बहुत कुछ झूठ बोलते हुए रीना के बारे में अपनी दोस्ती को प्रगाढ़ता में बदल दिया । रीना के पति की दोस्त का नाम था गौरी , रीना इन सभी बातों से अनभिज्ञ रहकर अपने आने वाले बच्चे के लिए सपने बुन रही थी वह समय भी आ गया जब रीना की कोख में 10 साल बाद उसके छोटे बेटे ने जन्म लिया , 1 दिन रीना रात के समय पर गरमा-गरम रोटी सेक रही थी अपने पति के लिए इतने में रीना के पति के पास गौरी का फोन आया फोन पर वह बात कर रहे थे तब भी रीना को किसी प्रकार की भनक नहीं हुई की माज़रा क्या है रीना सोची जैसे दूसरे ग्राहक हैं पति देव के ठीक वैसे ही गौरी भी उनकी ग्राहक है  , रीना के पति ने गोरी से रीना की भी बात कराई और गौरी ने रीना को ताना मारते हुए कहा कि अरे वाह आज तो आपके पति को गरमा-गरम रोटी खाने को मिलेगी मैंने रीना से कहा कि वह तो मैं रोज बना कर देती हूं अपने पति को दुकान से आने के बाद गरमा-गरम रोटी और साथ ही खाना खाती हूं जब बात पूरी हो गई और फोन रख दिया तो रीना ने अपने पति से सवाल उठाया कि गौरी ने ऐसा क्यों कहा तब रीना के पति ने कहा कि मैंने मजाक-मजाक में गोरी से कहा था कि मेरी पत्नी रोज खा पीकर सो जाती है और मेरे लिए कैसरोल में खाना बना कर रख देती है यह तो मैंने उसे मजाक में कहा था । रीना ने अपने पति से कहा कि इतना बड़ा झूठ मैं तो रोज तपस्या करते हुए आपके लिए तब तक भूखी रहती हूं जब तक आप खाना नहीं खा लेते । दिन पर दिन , गौरी और रीना के पति की दोस्ती गहरी होती चली जा रही थी पता ही ना चला रीना इन सब बातों से अनजान थी अभी भी जब रीना को कुछ आभास हुआ तो रीना ने इस संबंध में आवाज उठाई और अपने घर के समस्त बड़ों को जानकारी दी समस्त बड़ों ने अपने बेटे के कहने में आकर रीना को ही कोसा और यही कहा कि तुम्हें शक करने की बीमारी है तुम्हें साइकोलॉजिकल डॉ को दिखाना पड़ेगा । रीना अंदर ही अंदर घुटती चली गई क्योंकि उसके पास कोई सबूत नहीं था , इस बात को गुजरते हुए कई साल हो गए अब रीना का छोटा बेटा तीन साल का हो गया था और कोई भी रीना पर यकीन करने को तैयार नहीं था रीना का पति अपने मां-बाप को इस तरह घुमा रहा था कि रीना ही गलत है यहां तक कि खुद को बचाने के लिए उसने रीना के चरित्र पर ही ऊंगली उठाकर निशाना लगाकर कहा कि रीना ही चरित्रहीन है अपने आप को बचाने के लिए अपने मां-बाप की नजरों में अच्छा साबित करने के लिए उसने रीना पर ही इल्जाम लगा दिए रीना और ज्यादा टूट गई तब रीना के बड़े बेटे ने अपनी मां का खूब साथ दिया और बहुत सारे ऐसे सबूत इकट्ठे करवाएं जिससे उसके पिता की सच्चाई सबके सामने आ सके जब सबूतों के साथ रीना ने समस्त सच्चाई बड़ों के सामने रखी तो सब के पैरों तले जमीन खिसक गई सभी ने रीना के पति को खूब कोसा परंतु गौरी के साथ उसकी करीबी इतनी प्रगाढ़ता हो गई थी कि अब उनका दूर होना जैसे लग रहा था संभव ही नहीं है इस बीच लॉक डाउन लग गया जिस किसी को भी यह पता चला कि गौरी रीना के पति के चक्कर में फंसी हुई है सभी को हैरानी हुई गौरी के जाने वाले यही कहते कि गौरी का पति इतना सुंदर है कि उसे तो और किसी दूसरे मर्द को देखने की जरूरत ही नहीं है और साथ ही पैसे वाला भी है , परंतु अय्याश औरतों का कहां कोई ईमान होता है , ऐसी औरतों की तुलना मे तो वह औरतें बहुत अच्छी हैं जो खुलेआम पैसा लेकर अपना सौदा कर कमाती हैं और घर चलाती हैं । गौरी का पति जिसका नाम राहुल था क्या वह गौरी की इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहा था यही सवाल रीना की सखियां रीना से करती और रीना कहती मुझे क्या पता ? रीना अंदर ही अंदर अपने दर्द से जूझ रही थी और इस दर्द ने उसको अंदर ही अंदर खोखला कर दिया था इतना ज्यादा खोखला कर दिया था कि रीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह करें तो क्या करें परंतु रीना के ससुराल वाले रीना के पक्ष में ही थे जब उनके सामने सच्चाई आई अपने सास-ससुर का प्यार पाकर उनका साथ पाकर रीना हर एक परेशानियों से लड़ रही थी बात-बात में रीना को बेइज्जत करने वाला उसका पति इतना अधिक गिर गया था कि अपने झूठ पर पर्दा डालने के लिए रीना को ही चरित्रहीन बता दिया परंतु उसकी बातों पर किसी ने भी यकीन नहीं किया यकीन करते भी कैसे क्योंकि रीना के पति के पास कोई भी ऐसा ठोस सबूत नहीं था सभी ने कहा कि तुझे शर्म से डूब मर जाना चाहिए परंतु बेशर्म लोगों को किस बात की शर्म उसे तो सिर्फ अपनी पत्नी को धोखा देना था अपनी औलाद को धोखा देना था , लॉकडाउन लगने के बाद रीना का पति लौट कर वापस रीना के पास आया क्योंकि उसकी शरीर की भूख मिटाने वाली उसे नहीं मिल पा रही थी , रीना ने यही सोच कर रिश्ते को पुनः स्वीकार किया कि हो सकता है उन्हें रिश्ता बन जाए और रीना की सोच के अनुसार धीरे-धीरे रिश्ते में मिठास की आने लगी परंतु शारीरिक और मानसिक तौर पर रीना अभी भी सब स्वीकार नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसके साथ जो हुआ वह किसी के भी साथ ना हो यही सोच रीना की थी उसकी रूह में चोट लगी थी गहरी चोट जो उसके ही पति ने उसको दी थी । रीना सब ठीक होने के बावजूद भी दिल से रिश्ते को अपना नहीं पा रही थी क्योंकि चोट बहुत गहरी थी धीरे-धीरे रीना ने अपना दर्द अंदर ही अंदर घुटते हुए लिखना चालू किया , अपना दर्द लिखती और अपनी सखियों को सुनाती , लिखते-लिखते रीना को भी ना पता चला की वह कब शायर बन गई आम सी दिखने वाली लड़की जिसे कविता की एबीसीडी भी नहीं आती थी उसे पता ही न था कि शायर होता क्या है वो खुद एक शायर बन गई लोग उसकी कविताएं पढ़कर जिसमें सिर्फ दर्द ही दर्द झलकता था उफ्फ् कह जाते , कुछ कहते गहरी चोट है तो कोई कुछ , इसलिए लोग उसे दर्द- ए शायरा बुलाने लगे । उसकी हर एक कविता में जैसे उसकी जिंदगी की हकीकत समाई हो , उसके हर एक जख्म ,  उसके हर एक लिखे शब्द खुद बताते थे । उसकी आपबीती। रीना का बेटा बड़ा वाला 20 साल का हो गया है और रीना का छोटा बेटा 10 साल का हो गया है गर्मियों के दिनों में रीना जहां एक और अपने छोटे बेटे के साथ एक रूम में सोती थी तो बड़ा बेटा और उसका पति दूसरे रूम में सोते थे ताकि ऐसी एक ही चालू हो , एक दिन रीना के पति ने रीना से कहा कि बेटा बड़ा हो गया है उसे प्राइवेसी चाहिए और उसे अलग रूम में सोने के लिए बोल या मैं ही दूसरे रूम में सो जाता हूं । रीना ने अपने बेटे से कहा कि बेटा पापा कह रहे थे कि तुम्हें प्राइवेसी चाहिए तब बड़े बेटे ने बताया कि मां प्राइवेसी मुझे नहीं चाहिए प्राइवेसी पापा को चाहिए जो आज भी किसी महिला के संपर्क में है और रात-रात भर उससे बातें किया करते हैं और उस महिला का नंबर उन्होंने अपने मोबाइल में जिग्नेश नाम से सेव करके रखा है और मुझे सब समझ में आता है कि जिग्नेश कोई लड़का नहीं लड़की ही है एक दिन मौका पाकर रीना ने अपने पति के मोबाइल से उस नंबर को निकाला और उस नंबर की जब जांच की तो पता चला कि यह तो वही गौरी का नंबर है जिसके कारण पूरे घर में भूचाल आया था रीना सोची की शायद अब उसकी जिंदगी में खुशियां आ गई है उसकी जिंदगी में गोरी नाम की औरत का नामोनिशान नहीं है , परंतु यह क्या वही गौरी जिसने रीना की जिंदगी को नर्क बना दिया था जिसके प्यार में रीना का पति इतना अंधा हो गया था कि अपनी पत्नी पर भी झूठा इल्जाम लगा दिया चरित्र हीनता का आज फिर उसका पति उसी औरत के लिए झूठ बोलते हुए अब उसका नंबर अपने मोबाइल में किसी लड़के के नाम से सेव करता है आज रीना का बेटा 20 साल का हो गया है वह सब कुछ समझता है और सब कुछ अपनी आंखों से देख रहा है उसे अपने बाप से नफरत हो गई है वह बोलता कुछ नहीं है क्योंकि उसके अंदर उसकी मां के दिए हुए संस्कार हैं रीना ने ही उसे कहा कि बेटा खामोश रहो क्योंकि यह इंसान हमें कम से कम खिला पिला रहा है हमारा हर खर्चा वहन कर रहा है परंतु वह भी अब बच्चा नहीं था उसे भी नफरत थी अपने पिता से उसके कर्मों के लिए । जिस तरह रीना के मां-बाप अपने दामाद को कोसते थे और उनके मुंह से अपशब्द ही निकलते थे दामाद के लिए उसे बस दुआएं देते थे दें भी क्यों नहीं, उनकी बेटी के लबों की हसी जो उसके कारण चली गई थी , दिन भर खिलखिलाते रहने वाली उनकी बेटी दर्द के आगोश में समा गई थी । ठीक उसी तरह आज रीना का बेटा भी अपने ही पिता को कोसता है और अपने ही पिता को बद्दुआ ए देता है कि मां आज नहीं तो कल पापा को उसके कर्मों की सजा जरूर मिलेगी पापा ने जो आपके साथ किया है उससे बत्तर उनके साथ होगा । कभी रीना की सासु मां रीना को समझाते हुए बोलती थी कि बहू रीना मेरे बेटे को इतना प्यार मत दे की वो बिगड़ जाए । आज रीना की सासु मां इस दुनिया में नहीं है पर रीना आज भी उनकी बातों को याद रखे हुए है और सोचती काश मैंने सासु मां की बातों पर गौर फ़रमाया होता मैं क्यों उनके दिये इशारे को समझ नहीं पाई जब कि सासु मां मेरे ही पक्ष में थी । रीना अपनी जिंदगी में चल रहे हर एक दर्द को अपनी सासु मां से ही बांटती थी , ससुर जी ने बहुत समझाया अपने बेटे को पर कहते हैं ना कुत्ते की दुम टेड़ी की टेड़ी ही रहती है , उसको तो अपने मां बाप की इज्जत की परवाह भी नहीं थी । जब रीना की सासु मां अपने जिंदगी की आखरी क्षण गिन रही थी तब एक बार वो बोली रीना से हमने अपने बेटे से तेरी शादी करवा के तेरी जिंदगी बर्बाद कर दी हमें माफ कर दें , क्यों कि उन्हें पता था शादी से पहले ही उनका बेटा गलत संगत में फंसा हुआ था जिसके चलते वो अपने भाईयों की तरह पढ़ा-लिखा नहीं बन पाया , खैर रीना की जिंदगी का दर्द बांटने वाली अब उसके साथ न थी । कहानी लिखने तक के सफर में रीना के परिवार के साथ आगे क्या हुआ यह कोई नहीं जानता इसलिए इस कहानी का नाम है अधूरी जिंदगानी क्रमशः…
— वीना आडवाणी तन्वी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित