कविता

हम मंदिर में जाते हैं

हम मंदिर में जाते हैं
और घंटियां बजाते हैं
हम ईश्वर को जागते हैं
पर!हम क्या जाग पाते हैं।

हम ईश्वर वंदन करते हैं
चरणों में शीश झुकाते हैं
हम अपनी श्रद्धा जगाते हैं
पर!हम आत्मा में बसा पाते हैं।

हम धूप बत्ती जलाते हैं
और मंदिर को महकाते हैं
खुशनुमा माहौल बनाते हैं
पर!हम बुराइयों को जला पाते हैं।

हम श्रीफल चढ़ाते हैं
खूब मन्नत मांग लेते हैं
अपनी कामना का वर मांगते हैं
पर! हम पांच इंद्रियों को सौंप पाते हैं।

हम शंख नाद करते हैं
नकारात्मकता दूर भगाते हैं
सकारात्मकता की चाह रखते हैं
पर!हम दुर्भावनाओं को दूर कर पाते हैं।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578