कल्पना
दिल जब रोता है जार जार
जज्बातों की उठती हे ज्वार
शब्दों की धारा बह कर आती है
कोरे कागज पे कविता रच जाती है
सुख आये या दुःख आये जीवन में
खुशियाँ मस्कुराता है नील गगन में
तब भी दिल में आता है तुफान
टीस देती है कविता बन नादान
ख्वाब मन का जब टुट जाता है
अश्क गालों पे छलक जाता है
जब कूकती है कोयल बेईमान
कविता बन जाती है ये अरमान
शब्दों का फुहारा जब गिरता है
कविता ढेर सारा दीखता है
क्या खूब लिख दी है ये पयाम
जग को दे जाता है एक पैगाम
ये शायर अजब निराला है
शब्दों का बना गया पाला है
जब अपना ही दिल रोता है
कविता बन ढाढस देता है
— उदय किशोर साह