कविता

जग में…

हमारी कई धारणाएँ
कभी – कभी
गलत भी हो सकती हैं
दुनिया में ….
न कोई सच हमेशा के लिए
मान्य हो सकता है और
न झूठ का स्थिर रूप होता है
कालगति में
सच झूठ में तबदील होता है,
झूठ सच का रूप लेता है

दूसरे को दुख व पीड़ा देना,
सबसे बड़ा अपराध है
धर्म, संप्रदाय के नाम पर,
वर्ण,जाति,वर्ग, रंग, रूप आदि का
भेद- विभेद, विसंगतियों की रचना,
ऊँच – नीच की भावना पैदा करना
छल, कपट, धोखा है जग में

प्रेम एक अद्भुत चीज़ है
दिल से वह बात करता है
जोड़ता है वह एक दूसर को
जिससे समाज में
सुख-शांति होती है
प्रेम स्वीकार का नाम है
देश, काल, परिस्थितियाँ
तय करती हैं जीने का ढंग
लगता है हमें
मनुष्य के अपने कर्मों से
देवता व राक्षस
वास्तव में देवता व राक्षस
कोई ऐसा नहीं होता
यह भी एक
मन की धारणा है
कभी – कभी देवता भी
राक्षस बनता है,
राक्षस देवता बन सकता है
परिवर्तन का नियम है बदलाव
यही सत्य है जग में

सीखते हैं हम कई बातें
औरों से, अपने अनुभव से
जिंदगी चलती है
एक दूसरे के सहयोग से
बहुत बड़ी अजनबी है
जगत का यह व्यवहार।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।