कविता

हम अपनों के बिन अधूरे हैं

हम अपनों के बिन अधूरे हैं ,
छोटा –  सा   जीवन !
देखा है हमने
अपनों के बिन ए! जिंदगी! अधूरी है ,
हम अपनों के बिन अधूरे हैं।
छोटा – सा  जीवन!
सपने हैं मेरे बस इन्हीं से ,
देखा है हमने ,
बिन इनके मेरे सपने अधूरे हैं ,
अपनों के बिना ए! जिंदगी ! अधूरी है ,
हम अपनों के बिन अधूरे हैं।
छोटा – सा  जीवन!
मेरी ख़ुशियांँ  इन्हीं से,
बिन इनके घर कैसा ?
देखा है हमने ,
वह घर ही  अधूरा है ,
जिस घर में मेरे अपने ना हों ,
हम अपनों के बिन अधूरे हैं।
छोटा – सा  जीवन!
चेतना अपनों के बिन यह जीवन अधूरा है ,
देखा है हमने
अपनों के बिन ए! जिंदगी ! अधूरी है ,
हम अपनों के बिन अधूरे हैं।
— चेतनाप्रकाश चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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