मुक्ति मार्ग
कर ली है हमने
उस अनन्त यात्रा की तैयारी
जाने कब आ जाए अपनी बारी
अपने कर्मों की पोटली बना
पाप-पुण्य का करले थोड़ा हिसाब।
क्या तेरा है? क्या मेरा है
इसमें सारी उम्र गंवाई
फिर भी झोली अपनी खाली पाई
मोह के जंजीरों में जकड़े
माया में अपनी पहचान भुलाई।
झूठे रिश्ते नातों में
हमने अपनी जीवन गंवाई
सच्चाई उस ईश्वर की
हमें कभी समझ न आई
रोते को हंसाने की
हमने मर्म न जानी
उस राह पर चलते
धन-दौलत किसी काम न आई।
आओ ले चले
अपने कर्मों का लेखा-जोखा
थोड़ा कर्तव्य निर्वाह कर ले अपना
माथा उसके दर पर टेक ले…..
मुमकिन हो
अपनी राह थोड़ी आसान हो जाए
हमें मुक्ति का मार्ग मिल जाए।।
— विभा कुमारी “नीरजा”