कविता

सुहाना सफर

काश ! कोई हमसफर होता
कितना सुहाना ये सफर होता
दूर तलक चलते संग    संग
अपना एक ही डगर   होता

ना कोई गम ना कोई रंज
ना करता कोई हमको तंग
ख्वाब सतरंगी सा होता रंग
खुशियों से जीवन का होता रंग

नदी किनारे नित्य हम मिलते
एक दूजै के बाँहों में सजते
पीपल की छाॅव तले होता मिलन
किस्मत के फूल खिलता चमन

बादलों की आँचल में जा कर बसता
रंग बिरंगी चिलमन से तब सजता
आशियाना होता बेहद रंगीन
सपने पूरे होते    रात और दिन

आँगन होता बच्चों से गुलजार
किलकारी से होता आँगन गुंजार
हर्षित होता ख्वाबों का  संसार
खुशियाँ मिल जाता हमें अपार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088