पैसे खाने वाला सीधा दिखता है, भ्रष्टाचारी!
जबकि अनेक रूपों में घूमता हैं, भ्रष्टाचारी!!
पैसों से भी अनमोल समय है, विद्यार्थी और गरीब का!
अनमोल समय को खाने वाला, क्या कम हैं भ्रष्टाचारी!!
धरातल से ऊपर उठना मुश्किल है, प्रतिभाओं का !
धरातल का हनन करने वाले , क्या कम है भ्रष्टाचारी!!
पैसे खाने वाला सीधा दिखता है, भ्रष्टाचारी!
जबकि अनेक रूपों में घूमता हैं, भ्रष्टाचारी!!
साम – दाम – दंड भेद शिखर हैं, बस वाहवाही का !
वास्तविकता को ढकने वाले, क्या कम है भ्रष्टाचारी!!
आंखो पे पट्टी बांध तलवे चाटने चलन है, चापलूसों का!
चापलूसों को बढावा देने वाले, क्या कम हैं भ्रष्टाचारी!!
पैसे खाने वाला सीधा दिखता है, भ्रष्टाचारी!
जबकि अनेक रूपों में घूमता हैं, भ्रष्टाचारी!!
— कुमार जितेन्द्र “जीत”