सामाजिक

लुप्त हो रही है भारतीय संस्कृति

प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक भारतीय संस्कृति का एक अमूल्य योगदान रहा है। हमारे समाज में इसी भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने कई मंदिरों को बनवा कर एक कीर्तिमान स्थापित किया था, सुंदर-सुंदर नक्काशीदार मंदिरों की मूर्तियां आज के युग में खंडित दिखाई देती कई स्थानो पर, उन मंदिरों की नक्काशी को सुरक्षित रखने के लिए अब कोई उपाय नहीं किए जा रहे हैं, अगर ऐसा होता रहा तो हमारी भारतीय संस्कृति इसी तरह विलुप्त होने लगेगी।
हमने कई जगह देखा है कि रास्ते-रास्ते पर पेड़ों के नीचे कुछ-कुछ जगहों पर बिना मंदिर की मूर्तियां स्थापित है, जिन्हें मंदिर में स्थान नहीं दिया गया है, उनके लिए मंदिरों का निर्माण नहीं कराया गया है, गाय मवेशी आकर उसी स्थान पर मूत्र त्याग कर देते हैं, कई लोग पान खाकर उन्हीं मूर्तियों के आगे पीछे थूक देते हैं, सामने रखी हुई मूर्तियों पर किसी का विशेष ध्यान नहीं रहता है, जिस स्थान पर पूजा की जाती है उस स्थान पर इस तरह की गंदगी हमारी भारतीय संस्कृति को भी नुकसान पहुंचा रही है। आजकल की पीढ़ियां यह बात समझना नहीं चाहती है।
न गंगा जी की सफाई की जाती है, गंगा जी का पानी इतना दूषित हो गया है जहां देखो वही गंदगी नजर आती है। गंगा जी के घाट पर सुंदर सुंदर नक्काशीदार दीवारें धूल खा रही हैं उस पर बनी हुई सुंदर-सुंदर आकृतियां नष्ट हो रही है! प्रशासन इस पर ध्यान नहीं देती है वोट डालने के लिए नेता आगे पीछे जनता के घूमते रहते हैं, पर इन भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए उनके पास समय नहीं है।
पहले जमाने में सभी लोग मंदिरों में जाकर भजन कीर्तन किया करते थे, आजकल तो बहुत से मंदिर खाली दिखाई दिया करते हैं, ना कोई ठीक से भजन करता है और ना मंदिर के रखरखाव पर कोई ध्यान देता है। अभी जो नवरात्रि आई है वहां माता के जगराते में भी उद्दंडता देखी गई है, रात में जगराते के नाम पर लोग आते हैं भजन सुनने की बजाय एक-दूसरे की बैठकर रात भर बुराइयां करते हैं, एक तरफ भजन हो रहा होता है, कोई भजन को सुनना नहीं चाहते, बस शोरगुल हल्ला मचाना आजकल यह सब चलता रहता है।
पहले लोग जब गरबा करते थे मंदिरों में जाकर तो नजारा देखने लायक होता था, सुंदर-सुंदर पोशाकों में आकर माता के भजन के साथ गरबा किया जाता था, आजकल तो गरबा के नाम पर फूहड़ता हो गई है, मनोरंजन हो गया है जैसे! फिल्मी गानों में लोग गरबा करने लगे हैं, फिल्मी गानों में गरबा करके आप भारतीय संस्कृति को ही विलुप्त कर रहे है। हम बच्चों को गरबा करने के लिए माता रानी के भजन के लिए भेजते हैं, लेकिन बच्चों के साथ बड़े भी गरबा में फिल्मी गानों का प्रयोग करने लगे हैं, बहुत ही सोचनीय स्थिति है यह। हम क्या संस्कार दे रहे हैं? और क्या संस्कार ले रहे हैं? इन बाहरी आडंबर के चलते अपनी मर्यादा को भूल रहे है।
एक जमाना था जब किसी का जन्मदिन होता था तो आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग मंदिरों में जाकर नारियल फोड़ा करते थे, प्रसाद चढ़ाया करते थे, आजकल तो लोग जन्मदिन में पार्टियां करते हैं तो दारू और शैम्पेन की बोतल जरूर से खुलते है, आजकल लोग आशीर्वाद लेना तो दूर! यह किसी की सुनते भी नहीं है, और अपने मन की पार्टियां करते हैं। यह सब भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है! इससे आने वाली पीढ़ी भूल जाएगी संस्कारों को। आजकल बुद्धि का स्तर बहुत ही निम्न हो गया है, गलत विचारों को सही बोल कर धर्म के नाम पर कई लोग धंधा करने लगे है। अब मंदिरों में चढ़े हुए नारियल और प्रसाद को फिर से बेच कर दुकानदार अपना धंधा चला रहे हैं। बहुत दुख की बात है की मंदिरों तक में यह घोटाला चल रहा है, दर्शन कराने के नाम पर पंडित ही श्रद्धालुओं से पैसा ऐंठ लेते हैं, जो कतारों में लगे हैं वह नवरात्रि में पूजा करने के लिए माता के दर्शन के लिए लंबा इंतजार करते हैं, और बड़े-बड़े नेता वीआईपी कोटा लगाकर दर्शन कर लेते हैं। यह भारतीय संस्कृति का मजाक नहीं है, तो और क्या है? माता रानी के दरबार में सभी एक समान होते हैं, तो फिर बिना ओहदे वाले आम नागरिकों के लिए यह सेवा उपलब्ध क्यों नहीं है? क्या यह हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है? बिल्कुल नहीं है! इस पर सुधार लाना बहुत ही आवश्यक है।
भगवान को मंदिरों में स्थान दीजिए, गरीबों को भोजन कराए, छोटी-छोटी बच्चियों से भीख नहीं मंगाइए, नवरात्रि के समय छोटे-छोटे बच्चे मंदिरों के सामने भीख मांगते नजर आते हैं खास तौर पर जब कन्याएं भीख मांगती हैं तो मन द्रवित हो जाता है, जिनके पढ़ने-लिखने की उम्र है उन्हें रास्तों में इस तरह बेसहारा छोड़ दिया जाता है, क्या उन्हें अच्छी शिक्षा दीक्षा देकर उनका भविष्य नहीं बनाया जा सकता?
काश! वो प्राचीन सभ्यता फिर से आ जाए और वह संस्कार फिर से लोगों में जागृत हो जाए, तभी हम अपनी धरोहर को सुरक्षित रख पाएंगे। अपनी बुद्धि का विस्तार कीजिए, गरबा के नाम पर फूहड़ता बंद कीजिए! लुप्त होती भारतीय संस्कृति को बचाए, वरना आगे चलकर इंसानियत का स्तर निम्न हो जाएगा! जात-पात के नाम पर लोगों को लूटना बंद कीजिए! समानता का अधिकार सभी को प्राप्त होना चाहिए। पुरातन धरोहर को सुरक्षित करने के लिए कार्य कीजिए, तभी एक सुसंस्कृत समाज की स्थापना हो पाएगी और हमारी संस्कृति भी कई युगों तक सलामत रह पाएगी!
— पूजा गुप्ता

पूजा गुप्ता

कार्य :हाउस वाइफ जन्म स्थल:-जबलपुर मध्य प्रदेश माता :-रुक्मणी देवी गुप्ता पिता:-स्वo संत लाल गुप्ता शिक्षा:-बी०ए ग्रेजुएट (आर्ट्स) पता:-मिर्जापुर उत्तर प्रदेश कार्य क्षेत्र:-कवियित्री एवं लेखिका कृतियाँ:-मेरे मन के भाव (मन:स्थली) पहली और दूसरी काव्य रचना और विभिन्न राज्यों के पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचना तथा अन्य राज्यों के अखबारो मे कई काव्य साँझा संकलन मे सम्मिलित सम्मान और रचना। सम्मान:- 1-राजश्री साहित्य अकादमी मंच द्वारा सम्मानित। 2-काव्य मंजरी सहभागिता पत्र। 3- काव्य फाउंडेशन मंच द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त। 4-काव्य कुमुद मंच द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त। 5-गोपाल दास नीरज अखिल भारतीय साहित्य संस्थान मंच द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त। 6-पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा ऑनलाइन प्रतियोगिता में सम्मान पत्र प्राप्त। 7-शब्द ग्राम मंच द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त। 8-काव्य मंच-मेघदूत द्वारा प्रशस्ति पत्र प्राप्त। 9-नवल रश्मि-एक भोर नयी मंच द्वारा प्रशस्ति पत्र प्राप्त। 10-विभूति काव्य मंच द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त । 11-साहित्य संगम संस्थान की सभी इकाइयों मे सम्मान पत्र प्राप्त। 12- अंतर्राष्ट्रीय सखी साहित्य परिवार की ओर से सावन ब्यूटी अवार्ड विजेता 13- ज्ञानोत्कर्ष अकादमी द्वारा बेस्ट टीचर का सम्मान पत्र प्राप्त 14-वनिता पत्रिका मंच द्वारा विजेता घोषित फोन नंबर - 7007224126