लघुकथा – झाड़ दिया कि नहीं?
बता रामे, क्या हाल है?
ठीक है जनाब, हम ने तो झाड़ दिया,
कब ?
शोक सभा, पगड़ी रस्म भी कर दी,
अच्छा,कमाल है यार,पता ही नहीं चला, कैसे झाड़ा ?
क्या बताऊं यार, बहुत परेशानी थी, कई कई बीमारियों ने घेर रखा था, डाक्टरों की फीस, टैस्टों का सिआपा, दवाईयों का खर्च,चल फिर भी नहीं सकता था, चारपाई पर ही जुड़ा पड़ा था, मल-मूत्र संभालने का पंगा, चौबीस घंटे एक व्यक्ति तो सूली पर टंगा रहता था।
फिर कैसे झाड़ा ?
बस यार, झाड़ दिया, आप ने झाड़ा कि नहीं ?
नहीं यार,पैंशन लेता है ।
— बलविंदर बालम