लघुकथा

लघुकथा – दीपावली

मुन्नू उदास निगाहों से पटाखें चलाते हुए बच्चों को देख रहा था।आज दीपावली का दिन था। सब बच्चे नये-नये कपड़ों में सजे-धजे बहुत खुश नजर आ रहे थे।
छह वर्षीय मुन्नू को बस इतना पता था कि पन्द्रह दिन पहले उसकी दादी का देहांत हो गया था इसलिए इस बार दीपावली में शोक मनाया जाएगा।
मुन्नू के मम्मी -पापा भी चुपचाप उदास बैठे थे।पूरा  मोहल्ला रोशनी से जगमगा रहा था पर मुन्नू के घर पर अंधेरा छाया हुआ था।तभी उसे दादा जी आते हुए दिखे।उनके हाथों में बड़े-बड़े थैले थे। उन्होंने मुन्नू को गोद में उठाते हुये कहा-“देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ।”यह कहते हुए थैला उन्होंने उलट दिया। थैले में खूब सारे पटाखें ,मिठाईयां और दीपावली का सामान था।
सारा सामान देखकर बहू ने कहा” ये सब क्या है पिताजी ।हम लोग तो अभी शोक में  हैं फिर दीपावली कैसे मनाएंगे।”
दादाजी ने संयत शब्दों में कहा-“बहू, जाने वाले चले जाते हैं।उनको कभी भुलाया नहीं जा सकता पर जो  हैं उनको रुलाया भी नहीं सकता।दूसरों को खुशियां देना हमारा सबसे बड़ा धर्म है।चलो बहू  दीपक जलाओ। “मुन्नू को आवाज देते हुए दादाजी  ने कहा-“आओ मुन्नू सब मिलकर  दीपावली मनाते हैं।”
यह कहते हुए  दादाजी मुन्नू के साथ मिलकर पटाखें चलाने लगे।
—  डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- [email protected]