धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

छत्तीसगढ़ का एक धार्मिक व आध्यात्मिक स्थल : राजिम

हमारा छत्तीसगढ़ धर्म और आध्यात्म का विशेष स्थल है; जहाँ देवी-देवताओं का वास होता है ; स्वंयभू भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग जगह-जगह विद्यमान हैं। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ धान की फसल का उत्पादन बहुतायत है। ऐसे ही हमारे छत्तीसगढ़ को तीर्थस्थानों की जगह कहा जा सकता है, क्योंकि इस धरती में बहुत सारे तीर्थ व दार्शनिक स्थल हैं, जिनमें राजिम नगरी बहुत ही नामी स्थान है। पूर्व में राजिम को “कमल क्षेत्र”  के नाम से जाना जाता था।
राजिम नगरी में त्रिवेणी संगम :-
          महानदी,पैरी और सोंढूर तीन पवित्र नदियों का संगम है, इसलिए इसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है। त्रिवेणी संगम पर हमारी राजिम नगरी बसी है जो छत्तीसगढ़ का “प्रयाग” के नाम से विख्यात है। यह स्थान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के समीपस्थ जिला गरियाबंद में स्थित है। गरियाबंद की धरा के चारों तरफ हरियाली फैली हुई है। धान की बाली और सुंदर-सुंदर अनेक रंगों वाले फूलों की महक मन को मोह लेती  है। माघ मास में कुम्भ मेले का आयोजन होता है। राजिम नगरी भारत का पाँचवा तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। माघ पूर्णिमा में शिवरात्रि तक मँड़ई-मेला का भव्य आयोजन होता है, जो पन्द्रह दिनों तक चलता है। छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा राजिम मेला को पाँचवा कुम्भ का दर्जा प्राप्त है।
राजीव लोचन मंदिर :-
          राजिम में सुप्रसिद्ध राजीव लोचन भगवान विराजमान हैं। यहाँ की धरती पवित्र मानी जाती है। कहा जाता है कि वनवास काल के समय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र जी ने अपने कुल देवता महादेव जी की पूजा-अर्चना किया था। राजीव लोचन के बारे में कहा जाता है कि गाँव की राजिम नाम की एक महिला घूम-घूम कर तेल बेचती थी। एक दिन वह तेल बेचने जा रही थी तो अचानक जमीन में दबे पत्थर से टकरा गयी; और सर पर रखा तेल का पूरा पात्र पूरा खाली हो गया। राजिम माता बहुत चिंतित हो गयी। तेल का खाली पात्र को पत्थर पर रख दी और भगवान से विनती करने लगी कि अब मैं क्या करूँ भगवान ! यह सब कैसे हो गया। घर के लोगों से क्या कहूँगी। अपनी आँखें बंद कर के भगवान से विनती करने लगी। जमीन पर हाथ थामकर धीरे-धीरे उठ कर खाली पात्र को उठाने लगी तो उसने देखा कि उसका खाली पात्र तेल से लबालब हो गया। उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। साथ ही, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। राजिम ने घर जा कर घर वालों को आपबीती सुनाई, तो किसी को विश्वास नहीं हो रहा था। दूसरे दिन फिर वह तेल बेचने निकल गयी। सुबह से शाम हो गयी थी; किंतु बर्तन का तेल खत्म ही नहीं हुआ। राजिम के घरवालों ने पत्थर के शीला को निकाला तो वहाँ भगवान की मूर्ति थी; और वे फिर उसे अपने घर ले आये। घर में स्थापित कर लिया। उसका व्यापार अच्छा चलने लगा। गरीबी भी दूर हो लगी।
          एक दिन उस क्षेत्र के राजा जगतपाल को सपने में राजीव लोचन भगवान का दर्शन हुआ; भगवान कहने लगे कि इस मूर्ति की स्थापना मंदिर में करा दो। मैं इस समय राजिम तेलिन के घर में हूँ। राजा जगतपाल दूसरे ही दिन राजिम तेलिन के घर चले गये। अपने सपने के बारे में उन्हें बताया। राजिम उनकी बात नहीं मानी। राजा बहुत जिद्द करने लगे। राजिम जोर-जोर से रोने लगी। मैं अपने भगवान को अपने से दूर नहीं कर सकती। दूसरे दिन राजा ने अपने सैनिकों को आज्ञा दिया कि वे जबरदस्ती भगवान की मूर्ति को उठाकर ले आयें। मूर्ति बहुत ही वजनदार हो चुकी थी; उठी ही नहीं। फिर भगवान जी राजा के सपने में आ कर कहने लगे कि जब तक राजिम की रजामंदी नहीं होगी तब तक मैं हिल भी नहीं सकता। राजा राजिम के पास जा कर बोले कि माता आप न रोयें, आप जैसा चाहेंगी, वैसा ही होगा। बस इस मूर्ति को मंदिर में स्थापित करवा दीजिए। राजिम माता कहने लगी कि राजा !  मुझे तो अपना भगवान मिल गया; अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप भगवान के नाम को मेरे नाम से रख दीजिए जिससे यह पूरा संसार भगवान को मेरे नाम से जाना जाये। राजा मान गये; तब से वह स्थान राजिम नगरी के नाम से प्रसिद्ध है।
महादेव मंदिर :-
          इस मंदिर के बारे में सुनने को मिलता है कि नदी के बीचों-बीच कुलेश्वर महादेव विराजमान हैं। कहा जाता है कि वनवास काल में माता सीता जी अपने व्रत को पूर्ण करने के लिए नदी में स्नान कर के बालू (रेत) से महादेव जी की शिवलिंग बना कर पूजा की थी। अपने हाथों से इन पर जल चढ़ाया था। उसी समय से माता सीता की पाँच उँगलियों से शिवलिंग में छेद हो गया। इसलिए यह “पंचमुखी महादेव” कहलाया। आज भी माता सीता की उँगलियों के निशान देखने को मिलता है। दूर-दूर से भक्तजन पंचमुखी महादेव दर्शन के लिए आते हैं। माँघी पूर्णिमा में भव्य कुम्भ मेले का आयोजन होता है। पन्द्रह दिनों तक लगातार छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम चलता है। बड़े-बड़े राजनेता, फिल्म कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। देश-विदेश से लोग राजिम नगरी दर्शनार्थ आते हैं। स्वयं को धन्य समझते हैं।
मामा-भाँजा मंदिर :-
          राजीव लोचन से बाहर निकलते ही मामा-भाँजा का मंदिर है। कहा जाता है कि कुलेश्वर महादेव और राजीव लोचन मंदिर का दर्शन तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक मामा-भाँजा का दर्शन नहीं होता। इनके दर्शन के बिना भक्तजनों के दर्शन को अधूरा माना जाता है।
           यह भी कहा जाता है कि बाढ़ में जब कुलेश्वर मंदिर डूब रहा था तो वहाँ से एक आवाज आने लगी, ….बचाओ…. बचाओ…मामा….! मैं डूब रहा हूँ। तब मामा ने अपने भाँजे को बचाने नाव लेकर चल पड़ा ; और आपने भानजे को बचा भी लिया। उस दिन से मामा और भाँजा एक साथ एक ही नाव में बैठ कर नदी पार नहीं करते हैं।
           नदी के किनारे बसा मामा का मंदिर को जैसे ही बाढ़ का जल स्पर्श करता है, बाढ़ का पानी कम होना शुरू हो जाता है। कितना ही बाढ़ क्यों न आये, लेकिन कुलेश्वर महादेव का मंदिर कभी नहीं डूबता।
            राजिम त्रिवेणी संगम में अस्थि विसर्जन के लिए भी लोग आते हैं। यहाँ मोक्ष की प्राप्ति होती है। दूर-दूर के लोग आकर अस्थि विसर्जन और पिण्ड दान भी करते हैं।
कुम्भ मेला एवं दार्शनिक स्थल :-
          माँघ पूर्णिमा में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। पन्द्रह दिनों तक लोगो की भीड़ उमड़ती रहती है। देश-विदेश से लोग दर्शन करने और कुम्भ मेले का आनंद उठाते हैं। नदी के किनारे अन्य राज्यों से आये कई तरह का सामान बेचने वालों का पन्द्रह दिनों तक बसेरा रहता है। बड़े-बड़े साधु-संत चंदन-बंदन लगाए, हाथों में त्रिशूल पकड़े, अंग भभूती चुपड़े नागा साधु घूमते रहते हैं। साधु -संतों के साथ आम जनता भी स्नान करने आते हैं। अपने जीवन में लोगो को एक बार जरूर राजिम तीर्थ स्थल का दर्शन करना चाहिए।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Priyadewangan1997@gmail.com