कविता

दीपाली

अंँधेरा है जीवन में ,
थोड़ा  – सा उजाला मिल जाए ,
पल दो पल में ,
दु:ख के बादल छट जाए,
एक किरण हमको भी मिल जाए,
थोड़ा  – सा हम भी हंँस लें ।
घर घर ख़ुशियांँ  लेकर , दीपाली आई,
हताश मन में एक उम्मीद जगाई,
आ हम भी ! एक दीप जला लें ,
मेहनत करके ,  किस्मत को बदल दें,
 थोड़ा – सा हम भी ! जी लें ।
हमारे  इरादे  बुलंद हो  , चट्टानों से भी टकरा जाएं,
आंँधी  तूफानों में भी अडिग रहें
हमारी जड़ें मजबूत रहें ,
दीपाली जैसे;
सब एक सूत्र में बंँध जाएं ,
थोड़ा  – सा हम भी खुशी से पर्व मना लें।
— चेतनाप्रकाश चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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