दीपाली
अंँधेरा है जीवन में ,
थोड़ा – सा उजाला मिल जाए ,
पल दो पल में ,
दु:ख के बादल छट जाए,
एक किरण हमको भी मिल जाए,
थोड़ा – सा हम भी हंँस लें ।
घर घर ख़ुशियांँ लेकर , दीपाली आई,
हताश मन में एक उम्मीद जगाई,
आ हम भी ! एक दीप जला लें ,
मेहनत करके , किस्मत को बदल दें,
थोड़ा – सा हम भी ! जी लें ।
हमारे इरादे बुलंद हो , चट्टानों से भी टकरा जाएं,
आंँधी तूफानों में भी अडिग रहें
हमारी जड़ें मजबूत रहें ,
दीपाली जैसे;
सब एक सूत्र में बंँध जाएं ,
थोड़ा – सा हम भी खुशी से पर्व मना लें।
— चेतनाप्रकाश चितेरी