कविता

रामायण

सगर कुल दशरथ व्यथित, कैसे कुल चल पायेगा,
तीन शादियाँ करके भी, दशरथ निःसंतान रह जायेगा?
मन की पीड़ा निस्तारण हित, गुरू वशिष्ठ को बतलाया,
गुरूजनों ने यज्ञ विकल्प, सन्तान सुख हित बतलाया।
उचित समय पर चार पुत्र, दशरथ के घर में आये,
अयोध्या में उत्सव भारी, जन जन जिससे हर्षाये।
राम लखन भरत शत्रुघ्न, किलकारी भर खेल रहे,
कौशल्या कैकेयी और सुमित्रा, प्रफुल्लित हो देख रहे।
शिक्षा की ख़ातिर चारों ने, ऋषि आश्रम प्रस्थान किया,
खेल खेल में राक्षस मारे, कुल का रोशन नाम किया।
रचा स्वयंबर राजा जनक ने, विवाह हेतु सीता के,
भेजा अयोध्या को निमंत्रण, कुमारों के आमंत्रण के।
विश्वामित्र संग चारों कुमार, जनक पुरी में आये हैं,
देख कर सुन्दर रूप, जनकपुर वासी इठलाये हैं।
गुरू आज्ञा से शीश नवाकर, धनुष राम ने तोड़ दिया,
सीता ने वर माला पहनाकर, राम से गठजोड़ किया।
राम जन्म के निहितार्थ अनेकों, कौन समझ पाया था,
कैकेयी की बुद्धि बदलने, समय स्वयं आया था।
माँग लिया वनवास राम को, राज भारत को चाहा,
दशरथ ने प्राण त्याग दिये, वचनों को न बिसराया।
सीता और लक्ष्मण ने भी, संग में प्रस्थान किया,
दुष्टों के संधान हेतु, वन वासियों का आह्वान किया।
इसी बीच छली रावण ने, माँ सीता का हरण किया,
विद्वान ब्राह्मण कुल का था, ब्राह्मणत्व का क्षरण किया।
वानर दल का साथ मिला, सीता की खोज हुई जारी,
हनुमान समर्पित हुए राम को, खोजने की ली ज़िम्मेदारी।
जला दी अहंकार की लंका, राम की सामर्थ्य बताई,
अशोक वाटिका में माँ व्यथित, राम को बात बताई।
नल नील जामवन्त ने मिलकर, सेतु निर्माण किया,
अंगद ने पैर जमाकर, रावण का मर्दन मान किया।
मानवता की रक्षा हेतु, पशु पक्षी भी साथ आये,
गिलहरी के सेवा भाव, सबके मन को बहुत ही भाये।
सबके सामूहिक प्रयासों से, रावण कुल का नाश हुआ,
राजतिलक विभीषण का, लंका में राम राज हुआ।
पुष्पक विमान में सीता संग, राम लखन हनुमान विराजे,
चौदह वर्ष की अवधि पूर्ण, अयोध्या के पुनः भाग्य जागे।
चंहु और उत्सव भारी, अयोध्या मे मनी दीवाली,
राम का अभिषेक हुआ, रघुकुल रीत पूर्ण कर डाली।
— अ कीर्ति वर्द्धन