कविता – गोवर्धन
भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण मुरारी हो
सोलह कलाओं में निपुण तुम लीलाधारी हो
बाल्यअवस्था से तुम हो नटखट माँ यशोदा को बहुत भाते हो
सखायों के साथ जाकर माखन मिश्री चुराते हो
हे मुरलीधरन तुम मीरा के मोहन छवि न्यारी है
ब्रज की गोपियां सब तुम पर बलिहारी है
श्रीदामा बालसखा गोकुल के सब जन तुमको प्यारे हैं
मुरली की धुन सुन सब अपनी सुधबुध खो बैठे है
राधा सँग कृष्ण का एक पवित्र और अनोखा रिश्ता है
राक्षसी पूतना का किया संहार कालिया नाग मरण किया है
ब्रजवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाया है
छोटी उंगली को गोवर्धन पर्वत को उठाया है
बचाया सभी ब्रजबासियो को इंद्र के प्रकोप से है
सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा है
जब से अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है
सभी बृजवासी करें वंदन जयजयकार करते है
मामा कंस को स्वर्ग भेज का राज सिंहासन पाया
महाभारत में अर्जुन के बने सारथी उनको सही मार्ग दिखलाया
गीता का दिया उपदेश मन में ज्ञान का दीप जलाया
कान्हा तुम हो दीनों के रखवाले हम तुमको नमन करते है
— पूनम गुप्ता