मेरा गाँव
खेत खलिहान नदी मैदान
गाँव की है यही पहचान
अपनों को अपनों में पाया
हर दिल में है प्यार समाया
ना खरदूषण ना प्रदुषण
अन्न धन्य करता हर्षित मन
पीपल बरगद में देवों का वास
ऑगन में तुलसी का निवास
पड़ोसी सुख दुःख में काम आये
दोस्त मुसीबत में साथ निभाये
एक दुजै के हैं सब यहॉ साथी
जैसे दीपक संग जलता है बाती
गॉव की अपनी है जग में शान
हर घर में हर जन की है मान
बड़े बुर्जग सब के हैं अभिभावक
बच्चा बच्चा है जहाँ तेज धावक
सोना उपजे यहाँ की पावन मिट्टी
कसरत है मजबूत की हस्ती
होली दीपावली में पकता पकवान
संग संग दिखता बुढ़ा जवान
पत्थर है यहाँ देवों का प्रतिबम्ब
पूजते है हम नदी वो पेड़ नीम
पावन है गाँव का सच्चा प्रीत
सुबह शाम गुँजता लोक गीत
— उदय किशोर साह