/ एकता /
देखता हूँ मैं
उस अनंत आकाश की ओर
समता, स्वतंत्रता, बंधुता पूर्ण
समस्त मानव जाति को
एक सरल रेखा पर
स्वेच्छा तंत्र में बाँधकर
देखता हूँ मैं भी यहाँ
भेद – व्यवधान से मुक्त मनुष्य का
भाईचारे का यह भव्य दृश्य
नीले उस अखंड वेदी पर
अंतरंग की सहज प्रकृति है एकता
विचारों का यह मोहक चमक
भाने लगी है नादान दिल को,
सच में कहें तो
दुनिया को चलाती है
मनुष्य के अंदर की विकृति
ध्वस्त करती चलने लगी है
मनुष्य होने की भावना को
सुख – भोग की लालसा में लपेट
शासन सत्ता की चमक हो या
पैतृक संपदा की धमक का
परंपरा की प्रबल आचरण है
स्वार्थ के घोर-घन आवरण में
इसका अपना एक अलग प्रारूप है
अंधकार में लीन हुई
स्वार्थ की गर्जना
लगागतार इंसानियत पर
प्रहार करती है
दिमाग पर चोट करती है और
दिल को विचलित करती है,
आघातों की चोट खाकर
बच्चे की तरह डरता हूँ मैं
अपनी सहजता से अस्त – व्यस्त
आँसू की बूँदें मेरी
उस गगन मंडल से टप-टप गिरती हैं
रीढ़ की हड्डी के बगैर
कदम लेने का साहस
मेरे लिए तो नयी बात नहीं है
हाँ, सपनों की मेरी दुनिया
इस नादान दिल में मुस्कराती रहेगी
अक्षरों में अपना मुखड़ा दिखाकर
पराजितों की संतुष्टि बटोरती रहेगी
यहाँ न कोई मानों की अरमान है
पैमानों की गुंजाश है
बस, एक थाह है, अथाह है मेरी।