कविता

/ एकता /

देखता हूँ मैं
उस अनंत आकाश की ओर
समता, स्वतंत्रता, बंधुता पूर्ण
समस्त मानव जाति को
एक सरल रेखा पर
स्वेच्छा तंत्र में बाँधकर
देखता हूँ मैं भी यहाँ
भेद – व्यवधान से मुक्त मनुष्य का
भाईचारे का यह भव्य दृश्य
नीले उस अखंड वेदी पर
अंतरंग की सहज प्रकृति है एकता
विचारों का यह मोहक चमक
भाने लगी है नादान दिल को,
सच में कहें तो
दुनिया को चलाती है
मनुष्य के अंदर की विकृति
ध्वस्त करती चलने लगी है
मनुष्य होने की भावना को
सुख – भोग की लालसा में लपेट
शासन सत्ता की चमक हो या
पैतृक संपदा की धमक का
परंपरा की प्रबल आचरण है
स्वार्थ के घोर-घन आवरण में
इसका अपना एक अलग प्रारूप है
अंधकार में लीन हुई
स्वार्थ की गर्जना
लगागतार इंसानियत पर
प्रहार करती है
दिमाग पर चोट करती है और
दिल को विचलित करती है,
आघातों की चोट खाकर
बच्चे की तरह डरता हूँ मैं
अपनी सहजता से अस्त – व्यस्त
आँसू की बूँदें मेरी
उस गगन मंडल से टप-टप गिरती हैं
रीढ़ की हड्डी के बगैर
कदम लेने का साहस
मेरे लिए तो नयी बात नहीं है
हाँ, सपनों की मेरी दुनिया
इस नादान दिल में मुस्कराती रहेगी
अक्षरों में अपना मुखड़ा दिखाकर
पराजितों की संतुष्टि बटोरती रहेगी
यहाँ न कोई मानों की अरमान है
पैमानों की गुंजाश है
बस, एक थाह है, अथाह है मेरी।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।