गीतिका
हरे तम को हमेशा रौशनी आधार पाने दो
शिक्षा पढ़ते हुए बड़ा उपकार पाने दो
बड़ो साथ चलते कदम बढ़ते नापते हम
हमे खुद तनिक बदले यहाँ उपचार पाने दो
हुई भर्त्सना सबसे यही अपमान मन पाया
शिक्षक बनके मुझको आज आभार पाने दो
पढ़ा हो सदा जग चमक उजियारा सुनाना दो
नहीं टोको अभी थोडा समझ इज़हार पाने दो
यहीं मौका मिला किस्मत भली जानी बना सा
सुहानी भौर बनकर हो उदय स्वीकार पाने दो
दिवस तुमसे निकले चमक मोती सीप माने जो
मिली रंगीन दुनिया का मिला संसार पाने दो
नहीं डरते कभी आलस लिए बैठे बने खोये
जगा चाहत भरी खुशियाँ नया इकरार पाने दो