कविता

जीवन का सहर अनुभव

हे दयानिधान,कृपा निधान
आपकी बड़ी कृपा है
जो मुझे मानव जीवन दिया
ढेरों रिश्तों का अहसास दिया
सुख सुविधा सुंदर शरीर
सुखद स्वास्थ्य दिया
जन्म से अब तक अनेकानेक अनुभव कराया
बचपन जवानी, पुत्र पुत्री मां,बाप बेटी बेटा पति पत्नी सास बहू दादा दादी नाना नानी नाती पोते का आभास कराया
कितना कुछ दिया कि माला माल किए रखा
जीवन के उत्तरार्द्ध में ही सही
एक आखिरी अनुभव और करा दे
विधुर/ विधवा का भी अनुभव करा दे
तोये जीवन धन्य हो जाएगा
मानव जीवन का हर अनुभव लेकर
चैन से मर पाऊँगा/पाउँगी।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921