कुण्डली/छंद

धरती माता पर कुण्डलिया

(1)
धरती माता लाड़ का,है असीम भंडार।
संतति की सेवा करे,है सुख का आगार।।
है सुख का आगार,धरा है सुख की छाती।
जो व्यापक संपन्न,प्रचुर है जिसकी थाती।।
कौन गिने उपकार,मातु जो हम पर करती।
सचमुच में है धन्य,हमारी माता धरती।।
(2)
धरती देती प्यार नित,गाती नेहिल गान।
संतानों का भाग्य यह,गूँजे मंगलगान।।
गूँजे मंगलगान,पेड़-पौधों को सेती।
धरती का है मान,दया-करुणा जो देती।।
गूँजे मंगलगान,नदी,गिरि,मैदां वरती।
बोलो जय लब खोल,सुखों का सागर धरती।।
(3)
धरती जैसा कौन है,बतलाओ यह आज।
धरती की ममता करे,सारे जग पर राज।।
सारे जग पर राज,सदा वसुधा है भाती।
धरती है सम्पन्न,नीर,फल,अन्न दिलाती।।
जग का कोषागार,सदा ही जो है भरती।
जिसका वंदन रोज़,कहाती है वह धरती।।
(4)
धरती आकर्षक बहुत,पाया माता नाम।
जो सचमुच अभिराम है,वसुधा पावनधाम।।
वसुधा पावनधाम,इसी ने सब कुछ जाया।
वसुधा का ही काम,आदमी ने सब पाया।।
देख सके नहिं पीर,सदा जो पीड़ा हरती।
जन्नत जैसी दिव्य,हमारी प्यारी धरती।।
(5)
धरती में आलोक है,दूर करे अँधियार।
फसलों की रचना करे,जीव करे तैयार।।
जीव करे तैयार,सुखों की रचना करती।
धरती की है गोद,नित्य मंगल जो भरती।।
अवनि वंदना योग्य,नित्य ममता जो झरती।
जय जय जय जयगान,पूज लो सारे धरती।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com