मुक्तक/दोहा

दोहे “करलो अच्छे काम”

होने को अब जा रहा, जीवन का अवसान।
कलुषित मन की कामना, बन्द करो श्रीमान।।

बढ़ती ज्यों-ज्यों है उमर, त्यों-त्यों बढ़ती प्यास।
कामी भँवरे की नहीं, पूरी होती आस।।

लिखिए मत साहित्य में, कुण्ठा भरे विचार।
अच्छे लेख-विचार को, सब करते स्वीकार।।

जितना मिला नसीब से, अधिक न माँगो मित्र।
मीठे जल के कूप में, कभी न घोलो इत्र।।

सबके भरा दिमाग में, शब्दों का है कोश।
लोगों अपने ज्ञान पर, मत होना मदहोश।।

लिखकर सत्-साहित्य को, सफल करो यह लोक।
आधारित प्रारब्ध पर, रहते हैं डरपोक।।

थोड़ा सा जीवन बचा, करलो अच्छे काम।
मर जाने के बाद भी, अमर रहेगा नाम।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है