पुस्तक समीक्षा – अज्ञान से विज्ञान की ओर (भाग – 1)
प्रसिद्ध आलोचक श्री शैलेंद्र चौहान अपने एक आलेख ‘वैज्ञानिक चेतना और साहित्य ‘ में लिखते हैं कि ‘विज्ञान के अविष्कार की आदि भूमि भारत को मानने की काल्पनिक प्रवृत्ति को अंग्रेजी राज्य के दिनों में अधिक प्रोत्साहन प्राप्त हुआ ! अठारहवीं सदी में ब्रह्म समाज के अनुयायियों तथा जनता के अन्य प्रगतिशील वर्गों ने पश्चिमी सभ्यता की सभी अच्छाइयों को आत्मसात करके पाश्चात्य संस्कृति को चुनौती दी,तो अधिक कट्टर हिन्दू समाज के लोगों ने हिन्दू समाज में अपनाई जानेवाली हर चीज के औचित्य को सही सिद्ध किया और यह बताने की कोशिश किया कि पश्चिम की सभी खोजें और अविष्कार भारत के ऋषि-मुनियों को पहले ही ज्ञात थे ! ‘हंस के पूर्व सम्पादक राजेन्द्र यादव ने देश की जनता को ‘अनपढ़ बनाए रखने की साजिश ‘ पर आलेख लिखे हैं ! इसमें आगे का सच यह भी है कि भारतीय समाज को अंधविश्वासी भी बनाए रखा गया है ! जिसमें धर्म और फलित ज्योतिष की बहुत बड़ी भूमिका है ! काल्पनिक ईश्वर,देवी-देवता,आत्मा, पुनर्जन्म और उसमें पूर्वजन्म के कर्मों का फल, स्वर्ग-नरक,ओझा, गुनिया,गंडे-तावीज,भूत-प्रेत आदि तर्कहीन,कार्य-कारण संबंधविहीन अवैज्ञानिक धारणाओं को ज्ञान मान लिया गया है ! गणित-ज्योतिष जो ग्रहों यथा शनि, वृहस्पति,मंगल, पृथ्वी,शुक्र,बुध,उपग्रह चंद्र, हमारे अपने सितारे सूर्य और काल्पनिक स्थित बिन्दुओं यथा राहू और केतु की गतियों और स्थितियों को आधार बनाकर की गई गणना है और उसी पर एक आधारहीन बिना किसी कार्य-कारण का संबंध स्थापित किए एक ठग विद्या का निर्माण कर लिया गया है,जो आम आदमी के भाग्य की गणना कर उसके लिए शुभ-अशुभ मुहूर्त और फलादेश निकालकर आम भोली-भाली भारतीय जनता को ठगने का धंधा बना लिया गया है ! आज के समय में भी लोग नीबू-मिर्च के टोने-टोटके से अपने घर और व्यापार को बुरी नजर से बचाने में विश्वास रखते हैं ! ऐसे अंधविश्वासी और धर्मभीरू भारतीय समाज में तर्कसंगत,कार्य-कारणों को जोड़ती, वैज्ञानिक विचारधारा का प्रचार करती,सरल हिन्दी भाषा में पर्यावरण, वैज्ञानिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि विषयों पर बेखौफ और न्यायोचित लिखनेवाले सुप्रतिष्ठित चिंतक व लेखक श्री निर्मल कुमार शर्मा द्वारा लिखित ‘अज्ञान से विज्ञान की ओर -भाग – 1 ‘पुस्तक प्रकाश में आई है ।
इस पुस्तक में संकलित आलेख देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पूर्व में प्रकाशित हो चुके हैं। इन आलेखों में लेखक श्री निर्मल कुमार शर्मा जी को जल-जंगल-जमीन, जड़,चेतन,हवा और मनुष्य की भारी चिंता है, उन्हें चिंता है कि कैसे दिल्ली जैसे महानगर यमुना जैसी नदियों को काला कर रहे हैं ! करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी गंगा प्रदूषित बनी हुई है ! एवरेस्ट जैसे हिमालय के शिखरों पर कूड़े के ढेर बने हुए हैं ! उन्हें अपनी इस प्यारी सी धरती की चिंता है,जिस पर हम सब रहते हैं ! उनके ये लेख हवा में बढ़ते प्रदूषण पर हैं ! पृथ्वी के बढ़ते तापमान पर है ! अमेजन के नष्ट होते जंगलों पर है ! हिमालय में पिघलते हिमनदों पर है ! पहाड़ों पर अंधाधुंध बांधों के निर्माण से होने वाले भूस्खलन से नदियों और सड़कों की हो रही दुर्दशा पर है ! सूखते और चुकते जा रहे प्राकृतिक जलस्रोतों पर है ! भारी प्रदूषण और दोहन से मरती नदियों पर है और कथित विकास की अंधी दौड़ में कटते जा रहे जंगलों पर है ! उन्हें इन सभी की भारी चिंता है ! वे पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ सतत् संघर्ष कर रहे लोगों के काम और नाम सामने ला रहे हैं ! वे विश्व में सतत् हो रहे वैज्ञानिक आविष्कारों और औद्योगिक विकास को भी जनसाधारण की नजरों में लाना चाहते हैं । यह पृथ्वी जो हमारी मां है,वह हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकती है,परंतु हमारी हवश की नहीं ! उनके ये आलेख हमें ये समझना चाहते हैं कि यह पृथ्वी केवल मनुष्य मात्र की नहीं है ! यहां पर रह रहे हर जीव की है,हर वनस्पति की है ! उनकी चिंता पृथ्वी पर से हमेशा के लिए समाप्त हो रहे विभिन्न जीव-जन्तुओं और प्रजातियों से है,चाहे वह इस धरती के सबसे बड़े स्तनपाई जीव ब्लू ह्वेल हो या डाल्फिन हों या फिर जंगल का रक्षक, सबसे ताकतवर मांसभक्षी बाघ हो या सबसे तेज दौड़नेवाला चीता हो या बर्फीला भालू हो। वे सभी जीव पृथ्वी के जीवन चक्र के अभिन्न हिस्से हैं ! वे चाहते हैं कि पृथ्वी का जीवन चक्र कतई नहीं बिगड़ना चाहिए।
शर्मा जी के इस संकलन में हमारे समूचे ब्रह्माण्ड और उसमें स्थित निहारिकाओं, ब्लैकहोलों और विभिन्न स्थितियों में विस्फोट होते सितारों, ग्रहों,शनि, वृहस्पति,मंगल,शुक्र आदि उपग्रहों-चंद्रमाओं और अन्य छोटे पिण्डों, धूमकेतुओं,उल्काओं,छुद्रग्रहों और उनकी संरचनाओं पर भी उनके लेख हैं !
कुल मिलाकर इस पुस्तक का उद्देश्य हमारे जन को विज्ञान के प्रति आकर्षित करना है । विभिन्न धर्मों की विज्ञान विरोधी मान्यताओं, पाखंडों और अंधविश्वासों पर भी शर्मा जी के लेखों का तीखा प्रहार है !
विज्ञान की सीमा अथाह है ! वह हमारे जन-जन तक पहुंचना ही चाहिए । यह हम लेखकों का दायित्व व परम् कर्तव्य है कि हम अपने देश के हर नागरिक तक ज्ञान व सत्यपरक बात पहुंचाएं । अज्ञान से विज्ञान की तरफ ले जाते सरल भाषा में लिखे इन आलेखों का हम हृदय से स्वागत करते हैं । हम ये उम्मीद रखते हैं कि ऐसे लेखन को श्री शर्मा जी भविष्य में भी सतत् जारी रखेंगे और भारतीय समाज और हिन्दी साहित्य में एक बड़े रिक्त स्थान को भरते रहेंगे ।
— रामकिशोर मेहता
पुस्तक का नाम – ‘ अज्ञान से विज्ञान की ओर -भाग-1’
लेखक – निर्मल कुमार शर्मा
प्रकाशक – उद्भावना प्रकाशन, दिल्ली
संपर्क – 98115 82902,
ईमेल – [email protected]
मूल्य – 150 रूपये