कविता

रविवार

शुभ सुबह रविवार की
मंद मंद रफ्तार की
आलस्य संग विलंब भी
परिवार के संग प्यार की
अवकाश में कुछ खास है
सब होते अपने पास है
दोपहर शांत बिल्कुल नहीं
हास है परिहास है
चाय भी लगती अलग
अखबार घोंटा जायेगा
बिखरे बिखरे समय को
दोपहर समेटा जायेगा
दोपहर रविवार की
होती कुछ विचार की
सांझ घर को छोड़कर
बनती शोभा बाजार की
अन्य दिन समय चलाता
हमको अपनी चाल पर
उल्टा होता रविवार को
वो रहता हमारे हाल पर
चिंता रहित रविवार हो
खुशियों के रंग हजार हो
काम हो थोड़ा बहुत पर
पास में परिवार हो ।

– व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201