अधिगम प्रतिफल की वास्तविक स्थितियाँ
तयशुदा सच है,चंचल शिशु जल रही दीपक की लौ को पकड़ लेता है। लौ पकड़ने से उसका हाथ जल जाता है और उसे पीड़ा होती है। पीड़ा तो उसे तब भी होती है, जब शिशु चमकदार वस्तु समझकर तलवार की तेज धार को पकड़ लेते हैं और हाथ घायल कर बैठते हैं। हमारे दैनंदिनी में अनेक ऐसे उदाहरण है, जो अधिगम के उदाहरण हैं, यथा- पाठ याद करना, गणित के विविध सवालों को हल करना, बाइक चलाना, मोटरगाड़ी चलाना, टाइप करना इत्यादि।
ध्यातव्य है, ‘अधिगम प्रतिफल’ में दो शब्द है- अधिगम और प्रतिफल। सर्वप्रथम हम ‘अधिगम’ के बारे में जानते हैं कि यह क्या है ? इसे हम इसतरह से भी परिभाषित कर सकते हैं यानी अधिगम का अर्थ है- सीखना या व्यवहार परिवर्त्तन। व्यवहार परिवर्त्तन अनुभव एवं प्रशिक्षण के द्वारा होता है।
प्रश्नत:, प्रतिफल का बोध परिणाम से है। परिणाम चाहे कुछ भी हो, चाहे उन्नत स्थिति लिए या हारे को हरिनाम वाली स्थिति लिए हो। प्रतिफल में व्यवहार परिवर्त्तन भी होता है, क्योंकि इसके बदलाव में मनोविज्ञानी प्रक्रिया भी शामिल है, तो इसमें अनुकूलित व्यवहार या प्रतिकूल व्यवहार भी शामिल है।
क्या अधिगम की प्रकृति सकारात्मक है, तो नकारात्मक भी होगा ! यह एक सतत, सामाजिक और विवेकपूर्ण प्रक्रिया है, यह समायोजन से सम्बद्ध है। अधिगम प्रभावक तत्व लिए सम्मिलित है, तो प्रतिफल एक सीखी हुई क्रिया की वास्तविक प्रतिक्रिया। प्रयोगात्मक परीक्षण इसके हितबद्ध संवर्द्धित होते हैं। सीखने की क्रिया में अवबोध शामिल है। ध्यातव्य है, अधिगम पर हो रहे अनुसंधान का विश्लेषण भी प्रतिफल कहलाता है।
हम दोनों को जानकर ही अधिगम प्रतिफल की समझ विकसित कर सकते हैं। जहाँ शिक्षक के लिए ज्ञान संगठित करना आवश्यक होता है, जो कि प्रतिफल के हेतुक है। छात्रों के लिए लक्ष्य निर्धारण उसके अभिप्राय को प्रेरित करते हैं, यही अधिगम है।