कविता

तड़प मेरे गांव की

गांव की याद रह रह के, हाय जिया रूलाती है।
तड़प सीनें में उठती है, गांव की याद आती है।
शहर की  हवा जरीली सभी की सांस घुटती है,
कंकरीट के महलों में, न सौंधी खुशबू आती है।
लहलहाते खेत गांव के, कुंए से पानी भर लाना,
किये घुंघट नई नारी, मुडेर की रौनक बढ़ाती है।
यहाँ रिवाज हैं बदले , शहर पाश्चात्य में है डूबा ,
नंगे  सिर  बहू घूमें, नहीं माथे  सिंदूर लगाती है।
चौपाल गांव की महकती, गप्प छप्प बुजुर्गों की,
हंस्सीं ठिठोली में जिंदगी गांव की बीत जाती है।
शहर में बंद किये दरवाजे सभी तो लोग रहते हैं,
सभ्य गांव है अपना,अतिथि को शीश झुकाती है।
तड़प उठती है मिलने को नहीं यहाँ कोई अपना,
गांव में घुट के मिलना प्यार की रीत सीखाती है।
गांव  का  दर्द है  सांझा, नहीं  वो  बात  शहरों में,
शहर की यारी है झुठी, गांव हर  रस्म निभाती है।
तड़प मन में उठती है, सुनने को सुर कोयल का,
वो शाखा आम की घर की, जहाँ कोयल गाती है।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995