लघुकथा

बजरंग बली

आज विकास के तीसरे साइकिल स्टोर के उद्घाटन समारोह की पावन बेला थी.
अपने शानदार महल जैसे घर से निकलकर उद्घाटन समारोह के लिए कार में जाते हुए उसकी स्मृतियां कार की गति से भी तेज भाग रही थीं!
सड़क के विकास ने विकास के घर का दोहन कर लिया था. मुआवजे के नाम पर मिली उसके छूटे घर जितनी जमीन और चंद हजार मुआवजा राशि. इससे क्या घर बन सकता था! किशोरावस्था में पहुंचा विकास माता-पिता को रोते-बिलखते देख रहा था. माता-पिता का काम भले ही छोटा-मोटा था, पर रहने को अपनी छत तो थी! उनका काम ठीक-ठाक चल रहा था.
“आप लोग चिंता न करें, मैं उससे भी अच्छा घर बनवा लूंगा!” वह माता-पिता को तसल्ली देता. समझते थे कि बेटा तसल्ली देने के लिए यह कह रहा है, वे उसे आशीर्वाद से नवाजते.
“हनुमान अंकल, आप थोड़ी देर के लिए मुझे साइकिल चलाना सीखने के लिए साइकिल दे सकते हैं? मेरे पास किराया देने के लिए पैसे नहीं हैं, मैं किराया नहीं दे सकता, इसलिए पूछ रहा हूं!” साइकिल रिपेयर के शॉप मालिक हनुमान से विकास ने कहा था.
“जरूर, आप स्कूल से आकर थोड़ी देर मेरे साथ काम करो, तुम काम भी सीख जाओगे, साइकिल चलाना भी मैं तुम्हें सिखा दूंगा.” हनुमान उसके लिए बजरंग बली बन गए!
“कितनी मुश्किल से उसने अपना कारोबार जमाया था हनुमान अंकल से काम सीखकर पढ़ाई पूरी करते ही एक बड़े साइकिल स्टोर पर काम करना शुरु कर अपनी छोटी-सी दुकान खोलना, महल जैसा घर बनवाना, फिर पहला साइकिल स्टोर, दूसरा साइकिल स्टोर और आज तीसरा साइकिल स्टोर!
“सब अपने इष्टदेव की पूजा करते, वह पुराने घर की तस्वीर पर धूप-बत्ती करता, ताकि उसका सपना जीवंत रहे!” स्मृति वीथि पर चलते-चलते वह उद्घाटन स्थल पर पहुंच गया.
पिछले दो “साइकिल स्टोर्स” का उद्घाटन करने की भांति इस बार भी हनुमान अंकल का हार्दिक अभिनंदन करने के लिए मंच बिलकुल तैयार था. वे ही तो विकास के लिए बजरंग बली बन गए थे!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244