होता केवल स्नेह-समर्पण
“हमारे अल्फाज़,आपके जज़्बात” मंच पर विजेता कविता
सप्त अश्व के रथ पर आरुढ़,
सूर्य देवता आए हैं,
छठ पूजा की छटा देखने,
दर्शन देने आए हैं.
चार दिनों का छठ का पर्व है,
नहाय खाय फिर खरना आता,
इसी दिन बन जाता प्रसाद है,
पहला अर्घ्य भी है दिया जाता.
निर्जला व्रत अब शुरू होता है,
स्वच्छ-पावन हो नेम निभाता,
जय हो छठ मैय्या के जयकारे,
घाट पे हर पूजक है लगाता.
तीसरे दिन संध्या अर्घ्य की बारी,
सूप लिए घाटों पर आते,
ठेकुआ-सेव-नारंगी-केला,
डाभ-सिंघाड़ा-गन्ना लाते.
सज-धज कर जब व्रती सुहागिनें,
जल में खड़ी हो देंगी अर्घ्य,
सूर्यदेव भी मुस्काकर तब,
नभ से स्वीकारेंगे अर्घ्य.
डूबते सूरज की पूजा कर,
उगते सूर्य की पूजा भी होती,
चौथे दिन उषा अर्घ्य से,
छठ पूजा की आहुति होती.
गूँज रही हैं दसों दिशाएँ,
छठी मईया के गीतों से,
मिलना-जुलना भी होता है,
कब से बिछुड़े मीतों से.
छठ पूजा का होते आगमन,
होता पूजन-वंदन अर्पण,
भेदभाव के बंध तोड़कर,
होता केवल स्नेह-समर्पण,
होता केवल स्नेह-समर्पण,
होता केवल स्नेह-समर्पण.