कहानी

समीक्षा

सासु मां की बातों से खिन्न समीक्षा अक्सर स्टॉफरूम में सासु मां की बातों का जिक्र किया करती थी.
रिश्ता कोई भी हो विशेषकर सास-बहू का, थोड़ी-सी खटपट तो चलती ही रहती है, लेकिन सरेआम उसका जिक्र करना अक्सर मजाक और मनोरंजन का कारण बन जाता है.
“मैं स्कूल और टी.वी. सेंटर में काम करके थकी-हारी आती हूं और सासु मां तुरंत बेटों को कहती हैं- “अब जाओ मम्मा के पास, घुमी-घुमी करके आई है.”
“हाSSS,” कोई कहती “इतना भी नहीं सोचतीं कि घर के लिए इतनी मेहनत करके कमा रही है!”
“और क्या! मेरा तो तन-बदन जल जाता है, ऐसा डायलॉग सुनकर!”
“और भी बहुत कुछ कहती होंगी!” बस आग में घी लगाने वाली बात की ही कमी थी!
“जब मैं डस्टिंग करती हूं तो सुनने को मिलता है, “टेबिल के नीचे के कोनों को भी साफ करना, वहां मच्छर जमा हो जाते हैं.”
“खुद तो 24 घंटे डस्टर हाथ में लिए रहती हैं, हमसे भी ऐसी ही आशा करती हैं.”
“रात को थक-हार कर सोने जाने की तैयारी करो तो सुनने को मिलता है- “आटे की थैली टिन में पलट देना, कहीं चूहे न काट जाएं!” अब जाओ जी आटे की थैली टिन में पलटने, नींद तो गई भाड़ में!”
“वो तो शाम को अपने कमरे में फ्लिट लगाकर कमरा बंद कर देती हैं, हम तो रात को मच्छर तंग करें तो चप्पल से दीवार पर ठां करके मार देते हैं, उधर महारानी जी की नींद खराब हो जाती है!”
“अपना अलग मकान ले लो ना! सब झंझट ही मुक जाएगा!” कहीं से सुझाव आता.
“अब यही करना पड़ेगा!”
मनीषा सबकी बातें सुनती रहती, क्या कहे! समीक्षा की यह बात सुनकर उसने उसे सीधी राह पर लाने का निश्चय किया.
“तेरी सासु मां तेरे बेटों की परवरिश तो ठीक से करती हैं ना!” एक दिन अकेले में पाकर उससे पूछा.
“टच वुड, बहुत अच्छी तरह! मेरे से भी ज्यादा प्यार करती हैं. बच्चे रात को भी खाना दादी मां के साथ खाने की जिद्द करते हैं और वो बड़े प्यार से खिलाती भी हैं.”
“फिर उनका एक डायलॉग हंसकर सुनने में क्या हर्ज है! खुद 24 घंटे डस्टर हाथ में लिए रहती हैं तो तुम से ऐसी आशा करने में कौन-सी बड़ी बात है! और मैं तो खुद रात को सोने से पहले आटे की थैली टिन में पलटकर सोती हूं. रही बात नींद की, तो हमसे पूछो, इस उम्र में सबका यही हाल होता है, तुम्हारा भी होगा.” वीना चुपचाप बात सुन रही थी और मन में गुन रही थी.
“मकान अलग ले लोगी, पर उसको घर बनाने में बहुत समय और धैर्य लगेगा. कहां से लाओगी इतना समय और धैर्य! यहां तो सब कुछ सासु मां ने बना रखा है.” समीक्षा के दिल को बात कुछ-कुछ लग रही थी!
“एक बार घर से बाहर कदम निकाला तो फिर नहीं घुस पाओगी! इकलौता बेटा मुंह मोड़ गया तो सब कुछ इकलौती बेटी के पास चला जाएगा!”
“बात तो ठीक कह रही हो, इतनी भी बुरी नहीं हैं सासु मां!”
समीक्षा ने समीक्षा कर ली थी!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244