व्यंग्य कविता – तारीख़ को रिटायर हो रहा हूं
अपने इतने सालों की मौजमस्ती वाली
सेवा जिसमे रोज़ रात पार्टी लिया हूं
गड्डियों का पहाड़ घर में खड़ा किया हूं
तारीख़ को रिटायर हो रहा हूं
साथियों एजेंटों बिचौलियों से कह दिया हूं
मलाई वाली फाइलों को तारीख पहले बुलवाया हूं
पार्टियों पक्षकारों को जल्दी बुलवाया हूं
तारीख को रिटायर हो रहा हूं
आगे जिंदगी का क्या होगा सोच रहा हूं
पेंशन से काम नहीं चलेगा चिंतत हो रहा हूं
एशोआरम अय्याशी का आदि रहा हूं
तारीख़ को रिटायर हो रहा हूं
अभी मैं घर वालों सहित ठसन से जी रहा हूं
परिवार को सभी सुख सुविधाएं दे रहा हूं
मलाई बंदी से क्या होगा सोच रहा हूं
तारीख पर रिटायर हो रहा हूं
मलाई बिना पेंशन से कैसे जिऊंगा सोच रहा हूं
ठसन सहित रुतबा छिनेगा घबरा रहा हूं
हरे गुलाबी के बल पर विकारों का आदि रहा हूं
तारीख को रिटायर हो रहा हूं
— किशन सनमुख़दास भावनानी