बालगीत – धूप सुहानी
लगती हमको धूप सुहानी।
जाड़े की कहलाती रानी।।
जब जाड़े का मौसम आता।
बहुत-बहुत हमको वह भाता।
दादी कहती खूब कहानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
जब होता है विदा अँधेरा।
तब होता है स्वर्ण – सवेरा।।
सूर्य झाँकता खिड़की- छानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
छोड़ रजाई बाहर आते।
दैनिक चर्या में लग जाते।।
करते याद धूप में मानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
बैठ ओट में दादा – दादी।
पहन ओढ़कर तन पर खादी।
धूप सेंकते बात बतानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
जब हम विद्यालय को जाते।
कक्षा जहाँ धूप लगवाते।।
पढ़ते हिंदी गीत जबानी।
लगती हमको धूप सुहानी।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’