कविता

गजब का नया जमाना है आया

गजब का नया जमाना है आया
अपनों और परायों की नया परिभाषा लेकर आया
रिश्तों का नया नाम और आयाम लाया
माँ को मम और पिता को डैडू करके बुलाया
गजब का नया जमाना… ।
लोक लाज, सभ्यता संस्कृति का अंतिम संस्कार कर आया
माता पिता, ताई ताउ को घर के बाहर का रास्ता दिखाया
कुत्तों को घर के एसी में बिठाया
गजब का नया जमाना… ।
पर्दा प्रथा तो अब है पिछड़ेपन की छाया
बेशर्मी बनी आधुनिकता की काया
देशी खान पान की जगह विदेशी खान पान भाया
घर का चूल्हा बंद कर खाना आनलाईन मंगाया
गजब का नया जमाना… ।
देशी पोशाक की जगह छोटे छोटे कपडों को अपनाया
शादी- श्राद्ध, पूजा- पाठ सब आनलाईन करवाया
लीभींग रिलेशन का फैशन आया
घर का अभिभावक गुगल बाबा को बनाया
गजब का नया जमाना.. ।
— मृदुल शरण