ग़ज़ल
मुहब्बत से भरी बातें, यही दिल जानता
गिला – शिकवा सभी करना, यही तो ठानता सब है
कभी बर्बाद हो जायें, नहीं करते गिला हम तो
निभाना मौत से कब है, यही तो धारणा सब है
सही राहों चले फिर भी, ज़माना बीच आता है
हमें कब है निबट जाना, हमें तो ये पता सब है
नहीं थे चाहते हम भी, बदल ही थे गये तब तो
करेंगे आज भरपाई, अभी की जो ख़ता सब है
बुराई तो नहीं करनी, नहीं है पास आना
कहाँ जाना कहीं रहना, सपन वो पालता सब है
बने थे बेवफ़ा देखो, चले चालें वही सब ही
भले साथी बुरे साथी, बशर पहचानता सब है
रुला कर खूब हमको तो, मज़े से वो रहे सोते
नही हमको कराया चुप, सही दिल मानता सब है
— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘