लघुकथा

अनमोल उपहार

विवाह के बाद पहली बार मायके आयी बेटी का स्वागत सप्ताह भर चला.
सप्ताह भर बेटी को जो पसन्द है, वही सब किया गया. वापिस ससुराल जाते समय पिता ने बेटी को एक अति सुगंधित अगरबत्ती का पैकेट दिया और कहा- “बेटी, तुम जब ससुराल में पूजा करने जाओगी, तब यह अगरबत्ती जरूर जलाना.”
माँ ने कहा “बिटिया प्रथम बार मायके से ससुराल जा रही है,तो भला कोई अगरबत्ती जैसी चीज देता है?”
“पिता ने झट से जेब में हाथ डाला और जेब में जितने भी रुपये थे, वो सब बेटी को दे दिए.
ससुराल में पहुंचते ही सासू माँ ने बहू के माता-पिता ने बेटी को विदाई में क्या दिया, यह देखा तो वह अगरबत्ती का पैकेट भी दिखा. सासू माँ ने मुंह बना कर बहू को बोला कि-कल पूजा में यह अगरबत्ती लगा लेना.”
“सुबह जब बेटी पूजा करने बैठी, अगरबत्ती का पैकेट खोला तो उसमें से एक चिट्ठी निकली.”
लिखा था-
“बेटा यह अगरबत्ती स्वतः जलती है, मगर संपूर्ण घर को सुगंधित कर देती है. इतना ही नहीं, आजू-बाजू के पूरे वातावरण को भी अपनी महक से सुगंधित एवम प्रफुल्लित कर देती है…!!
हो सकता है कि तुम कभी पति से कुछ समय के लिए रुठ जाओगी या कभी अपने सास-ससुरजी से नाराज हो जाओगी, कभी देवर या ननद से भी रूठोगी, कभी तुम्हें किसी से बातें सुननी भी पड़ जाएं या फिर कभी अड़ोस-पड़ोसियों के वर्तन पर तुम्हारा दिल खट्टा हो जाये, तब तुम मेरी यह भेंट ध्यान में रखना.
अगरबत्ती की तरह जलना, जैसे अगरबत्ती स्वयं जलते हुए पूरे घर और सम्पूर्ण परिसर को सुगंधित और प्रफुल्लित कर ऊर्जा से भरती है, ठीक उसी तरह तुम स्वतः सहन करते हुए ससुराल को अपना मायका समझ कर सब को अपने व्यवहार और कर्म से सुगंधित और प्रफुल्लित करना…”
बेटी चिट्ठी पढ़कर फफक कर रोने लगी, सासू मां लपककर आयी, पति और ससुरजी भी पूजा घर में पहुंचे जहां बहू रो रही थी.
“अरे हाथ को चटका लग गया क्या?, ऐसा पति ने पूछा.”
“क्या हुआ यह तो बताओ, ससुरजी बोले.”
सासू माँ आजू-बाजू के सामान में कुछ है,क्या यह देखने लगी.
तो उन्हें पिता द्वारा सुंदर अक्षरों में लिखी हुई चिठ्ठी नजर आयी, चिट्ठी पढ़ते ही उन्होंने बहू को गले से लगा लिया और चिट्ठी ससुरजी के हाथों में दी. चश्मा न पहने होने की वजह से चिट्ठी बेटे को देकर पढ़ने के लिए कहा.
सारी बात समझते ही संपूर्ण घर स्तब्ध हो गया.
सासू माँ बोली- “अरे, यह चिठ्ठी फ्रेम करानी है. यह मेरी बहू को मिला हुआ सबसे अनमोल उपहार है, पूजा घर के बाजू में में ही इसकी फ्रेम होनी चाहिए.”
और फिर सदैव वह फ्रेम अपने शब्दों से, सम्पूर्ण घर, और अगल-बगल के वातावरण को अपने अर्थ से महकाती रही, अगरबत्ती का पुड़ा खत्म होने के बावजूद भी.
लीला तिवानी
नई दिल्ली

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244