धरती मां कर रही पुकार
हमारे अल्फाज , आपके जज्बात मंच पर विजेता कविता
करुण क्रंदन सुन तरुवर का,
धरती मां कर रही पुकार,
इनकी भी गाथा तो सुन लो,
फिर कर लेना मन में विचार.
जैसे तुमको जान है प्यारी,
इनको भी प्यारी है जान,
बेदर्दी से इन्हें काटकर,
क्यों करते हो पाप महान?
पर तुम कैसे सुन पाओगे,
बुद्धि तुम्हारी में है रात,
बड़ी-बड़ी बातें करते हो,
अमल में लाते न एक भी बात!
कहते हो “बेटी-बेटा समान”,
क्या देते बेटी को मान!
गर्भस्थ गुड़िया देते मार,
दया कहां तुम में इंसान!
बेटी को जन्म न लेने दोगे,
बहू कहां से तुम लाओगे?
वृक्ष काटते अगर रहोगे,
बोलो तो फिर क्या खाओगे?
वृक्ष कटाव को रोकें नहीं तो,
पीने को पानी नहीं मिलेगा,
मिट्टी मेरी तुम फांकोगे,
बादल का दिल नहीं पिघलेगा.
वृक्ष काटना छोड़के अब तो,
इन्हें सींचना सीखना होगा,
इनके खारे अश्रुकणों से,
द्रवित होकर भीगना होगा.
इनका मान करोगे ‘गर तुम,
ये भी मान करेंगे तुम्हारा,
देंगे ये फल-फूल-अन्न-धन,
हर्षित होगा जग ये सारा.