कविता

मत करो लापरवाही

थोड़ी-सी लापरवाही
कर जाती है तबाही
समय रहते
अन्याय का प्रतिकार न किया तो
देते रहो ताउम्र दुहाई
कभी जज छुट्टी पर होगा
कभी सामने वाली पार्टी नहीं आई
कभी मूल (ओरिजिनल) कागज मांगे जाएंगे
कभी तलब की जाएगी गवाही
समय अनुकूल होगा तो
मिल सकती है अन्याय से रिहाई
वरना काम नहीं आती कोई भी गवाही
अंत में एक ही सीख निकल आई
थोड़ी-सी लापरवाही
कर जाती है तबाही
मत करो लापरवाही,
मत करो लापरवाही,
मत करो लापरवाही.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244