लघुकथा

तबादला

शाम को दफ्तर से आते ही राकेश ने कहा “सामान बांधना शुरू कर दो हमारा तबादला हो गया।”
तबादले का नाम सुनते ही स्नेहा की घबराहट शुरू हो जाती है। फिर से एक-एक सामान बांधों और चल दो किसी नए शहर को। देहरादून आए अभी एक ही साल तो हुआ, और तबादले का आर्डर आ गया।
शुरू -शुरू में स्नेहा को तबादला बड़ा अच्छा लगता था,वो काफी खुश होती थी तबादले के नाम पर कि नए-नए शहर देखने को मिलेंगे ,घुमने-फिरने के खूब अवसर मिलेंगे।
लेकिन जैसे -जैसे उम्र बढ़ती जा रही है वैसे -वैसे उसे तबादले के नाम से भी चिढ़ होने लगी है अब तो नए शहर जाने के नाम से ही घबराहट होने लगी है।
राकेश का क्या है? नए शहर जाते ही वो अपने दफ्तर में व्यस्त हो जाते है सारा सेटिंग तो स्नेहा को ही देखना पड़ता है। बच्चों के स्कूल से लेकर घर की सारी जिम्मेदारी स्नेहा की होती। रिश्तेदारों के जुबान पर एक ही बात रहती है “स्नेहा के बड़े मज़े है हमेशा घुमती ही रहती है , किस्मत हो तो स्नेहा जैसी” ।
स्नेहा सोचती है “जूता तो सिर्फ पहनने वाले को ही काटती है दूसरों को तो बस उसकी खूबसूरती ही नजर आती है “!
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P