कविता

जीवन की बगिया

जीवन की झ्स बगिया में
रंग  विरंगे हैं फूल     खिले
कोई गोरा कोई है     काला
अजीब अजीब है ये लल्ले

कोई खुशहाल कोई गमजदां
कोई है भूखा  कोई   बिछड़े
कोई खाकर है मर       रहा
कोई अन्न अन्न को    तरसे

कोई महलों में ठाठ से सोता
कोई झोपड़ पट्टी में है  सोये
कोई रंग महल में हँसता  है
कोई फुटपाथ पर    जन्मे

कोई राजा महराजा    है
कोई फटेहाल में     रोये
कैसी जीवन दी है रब ने
कैसे ये जीवन को जीयें

कोई मिहनत दिन रात करता
कोई वातानुकूल में  सोये
कोई तपती धूप में    जलता
कोई फ्रिज का बोतल पीये

अजब गजब गुलशन है तेरा
कोई झ्स पर का बात   कहे
तुँ ही है जवाब प्रभुवर  सबका
हम मानव तुमको क्या   कहें

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088