प्रसन्न
जीवन में चाहे जितना भी ! कष्ट हो ,
मैं हमेशा प्रसन्न रहती हूंँ ,
सुख – दुख सुबह शाम जैसा;
इनका आना – जाना जीवन में लगा ही रहता ,
जीवन में चाहे जितना भी कष्ट हो,
फिर भी , मैं हमेशा प्रसन्न रहती हूंँ।
मिलती है मुझको प्रेरणा काँटों में खिले फूलों से,
हमने मुरझाना सीखा ही नहीं ,
ताउम्र भंँवरों की तरह गुनगुनाती रहती हूंँ ,
मदमस्त अपनी धुन में राग गाती हूंँ ,
जीवन में चाहे जितना भी ! कष्ट हो ,
हर हालात में मैं सदा प्रसन्न रहती हूंँ ।
मिलती है ख़ुशियांँ मुझको अपनों के संग ,
उनसे मिलकर मैं प्रसन्न होती हूंँ ,
लगता है मुझे सबसे अच्छा!
मुझे अपनों से बल मिलता है,
डटकर चुनौतियों का सामना करती हूंँ ,
जीवन में समस्याएं चाहे जितनी भी ! हो ,
धैर्यता के साथ समाधान ढूंँढती हूंँ ,
जीवन में चाहे जितना भी! कष्ट हो,
मैं हमेशा प्रसन्न रहती हूंँ।
— चेतना प्रकाश ‘चितेरी’