कहानी

लॉकडाउन जिन्दगी

” मेरे घर में यह कदम नहीं रख सकती है, जहां से इसे उठा लाए हो वहीं छोड़ आओ….!” बेटे को मां की चेतावनी ।

” न जात का पता है न बाप का पता, किसी को भी घर की बहू मान लें..जाति-गुस्टि भी तो मिलनी चाहिए…!” बाप ने भी कडा एतराज जताया था ।

” कुंवारी नहीं मिल रही थी, जो किसी की बीवी भगा ले आया…?” यह भाभी थी ।

हो- हल्ला सुन राम जी साव के घर के बाहर पूरे टोले-मुहल्ले के लोग  जमा हो गया थे । नयना, नागेन्द्र की ओर अकबकाई नजरों से देखने लगी और नागेन्द्र मां बाप की ओर देखने लगा था…। प्यार अंधा होता है,” लव इज ब्लाइंड ” यह कहावत आपने बहुतों के मुख से, बहुतों बार सुना होगा, किताबों में भी पढ़ा होगा । पर शांति चौक के मुहल्ले वाले आज प्रत्यक्ष रूप में देख रहे थे ।

घटना पिछले साल मई महीने की है । करोना के कयामत का दौर था । छुआ-छूत से कोढ़ होते सुना था, करोना से करोना फैलते पूरा देश देख रहा था । डर भी ऐसा कि घर में रहने वाला भाई, बाहर काम करने गए सगे भाई को भी घर में आने से मना करते देखा गया । लोग भी करें तो क्या करें ? डरें तो कितना डरें ! दो साल से करोना डायनासोर की तरह लोगों को निगल रहा था और संबंधों को डर निगल रहा था । मंत्री हो ! संतरी हो ! नेता हो – अभिनेता हो ! आम-आदमी, सब करोना के ग्रास बन रहे थे । डर के आगे यहां जीत नहीं मौत मिल रही थीं । सबके लिए करोना एक काल बन कर आया था । भयभीत लोग  काम छोड़ -छाड कर,घर की ओर भाग रहे थे। रेल-बसों के  पीछे दौड़ लगा रहे थे । घर पहुंचने की आपा-धापी! जान बचाने की जद्दोजहद!  घर में पहुंच जाने से शायद उनकी जान बच जाए । करोना उन्हें पकड़ न पाए । हर किसी के मन में यही विचार-मंथन ! घर जाकर अगर वो मर भी जाए तो लाश को कंधा तो मिलेगी ! बाहर मर कर चील-कौवों का आहार तो नहीं बनना पड़ेगा ! सबकी एक ही धुन ! जल्दी से घर पहुंचो ! जान बची तो बाद में लाखों कमा लेंगे..!

यही सोच कर नागेन्द्र भी एक दिन नागपुर कपड़ा मिल का काम छोड़ घर के लिए निकल पड़ा था ।दो दिन पहले उसने करोना जांच कराई थी जिसका  निगेटिव प्रमाण पत्र भी साथ लेकर चला था । गांव में कदम रखा तो शांति चौक गर्ल हाई स्कूल के एक कमरे में चौदह दिन के लिए कोरेनटाइन होना पड़ा ‌।घर लौटने की सूचना उसने फोन पर  माता पिता और भैया-भाभी को सुबह ही दे दी थी।  दिन भर बीत गया , शाम होने को चली, खाना पीना पूछना तो दूर, उनसे मिलने  घर से अभी तक कोई नहीं आया ।जाने क्या सोच रहे हैं उनके घर वाले । उसके मन की धुकधुकी बढ़ी हुई थी । अलबत्ता शाम को भैया का फोन आया-” घर तो आ ही चुके हो, थोड़ा दिन स्कूल में भी रह लो, चौदह दिन की ही तो बात है..!”

-” भैया जैसा पढ़ा लिखा होता तो,बाहर मजदूर बन कपड़ा मिल में काम करने जाना नहीं पड़ता, इतने दिनों में जब तेरा कुछ नहीं हुआ तो चौदह दिन में क्या हो जाएगा !” भाभी की बोली नागेन्द्र के सीने में गोली की तरह लगी थी ।

यह उसकी वही भाभी थी जो सदर अस्पताल में नर्स की नौकरी लगने के पहले उसे ” देवर हो..देवर हो..!” कहते नहीं थकती थी । आज उसके मरने की कामना कर रही थी । ऐसा तो उसने मुंह से नहीं कहा पर कहने का भाव तो वही था-” इतने दिनों में जब तेरा कुछ नहीं हुआ तो चौदह दिनों में क्या हो जाएगा..?” सुनकर ही उसका मन आहत हो उठा था ।

माता पिता की ओर से कुछ नहीं कहा गया । न किसी तरह की उसकी हाल समाचार जानने की उन्होंने कोशिश की । उसे लगा उसका घर लौटना किसी को रास नहीं आईं है । तो क्या उनके माता-पिता को भी उनसे हर माह मिलने वाले उनके रुपयों से मतलब रहा है, उनसे नहीं । साफ प्रतीत होता कि घर में उसका किसी को प्रवाह नही है-मरो या जियो-तुम्हारी किस्मत-तुम जानो !

भैया का शिक्षक में चयनित होने और भाभी की नर्स की नौकरी लग जाने से  संबंधों के प्रति दोनों को इतना नकारात्मक बना देगा, नागेन्द्र ने कभी सोचा भी नहीं था । एक साथ उनके मन में भावनाओं का तूफान सा उठ खड़ा हो गया था ।

रात को उसे तनिक भी खाने की इच्छा नहीं हुई । सेंटर वालों के कहने पर थोड़ा खा लिया और फिर सो गया। परन्तु आंखों से नींद गायब !  देर रात तक पागलों की तरह सोचता रहा । सोना चाहा तो आंखों के सामने वही हादसे -वही मंजर ! रेल की पटरी..सतरह लोग..बिखरी लाशें..खून से सना रेल की पटरियां और अखबार के पन्ने.. अगर उन लाशों में से एक लाश उनका भी होता तो घर वाले उनकी लाश लाने जाते या उनकी लाश भी चील कौओं का आहार बन जाता ! जबरन इस तरफ से ध्यान हटाया तो अबकी उसने बस के पीछे खुद को दौड़ते पाया.. एक दूसरे को कोंचते-ठेलते बस में चढ़ने की कोशिश में बस के गेट का पाइप का उखड़ जाना और इसके साथ ही एक लड़के का बस के पिछले चक्के के नीचे आकर पैर कुचल जाना .. अगर उसकी जगह वो खुद होता तब क्या होता..? वो भी तो दूसरा रड पकड़े देर तक हवा में लटका रहा था.. तभी किसी ने जोर से उसे अंदर खींचा लिया था.. कितना मुश्किल था भीड़ में खुद को एडजस्ट करना..! किसी तरह पापड़ बेलते..ठेलाते हुए वह पारसनाथ स्टेशन में जब उतरा तो लगा था” अब जान बच बची…!”

घर पहुंचा तो घर वाले मिलने तक नहीं आए ! जीते जी उसे मरा हुआ समझ लिया जैसे । कहां गया भैया-भाभी का प्यार ! किसने छीन ली उसके हिस्से का मां बाप का दुलार ! संबंधों के बीच यह कैसा रेगिस्तान उग आया था जहां सगे को भी सौतेला बना दिया था । किस तरह घर तक पहुंचा, एक बार भी किसी ने नहीं पुछा..! इन्हीं ख्यालों में खोया न जाने कब सो गया पता तक नहीं चला ।

सुबह उठा तो सूरज को बांस भर ऊपर पाया । दरवाजा खोला और आंख मलता हुआ बाहर निकला, सामने हंसते हुए एक सुंदर युवती को पाया । मोबाइल पर किसी से  हंस हंस के वह बातें कर रही थी ।  सलवार कमीज में एक बारगी वह शबाना आजमी सी लगी थी उसे। नजरें चार हुई । दोनों ने एक दूसरे को गहरी भावों से देखते पाया और दोनों की आंखें मुस्कुराते पाये ! दोनों में कोई बोल चाल होती कि तभी बगल के कमरे से आवाज़ आई ” नयना…!” आवाज सुनते ही वह बगल वाले कमरे में चली गई परन्तु उसकी नजरों में नागेन्द्र आ गया था । इधर

” नयना..!” नाम नागेन्द्र की जुबान पर चिपक गई वह इसी धुन में शौच के लिए निकल पड़ा था । नागेन्द्र दिन भर कमरे के बाहर बैठा रहा पर नयना शाम तक दुबारा नजर नहीं आई । दोपहर खाने के वक्त भी वह बाहर नहीं निकली या उसे निकलने नहीं दिया गया । कुछ पता नहीं चल सका । देखा उसका पति दो पतर में खाना बारी बारी कमरे में ले गया था ।

शाम को सेंटर के संचालक से नागेन्द्र को पता चला कि नयना सुभाष नगर की रहने वाली है । पढ़ लिख कर मीडिया रिपोर्टर बनने की सोच रखने वाली नयना का विवाह दो साल पूर्व गांधी चौक के रोहित साव के साथ बड़े ही विषम परिस्थितियों में हुई थी । नयना का बाप जो एक सीसीएल कर्मी था, एक सड़क दुघर्टना में मारा गया था । शराब और जुए का शौक रखने वाला नयना का बाप सर से पांव तक कर्ज में डूबा हुआ था । उसकी मौत के बाद घर की माली हालत और बदतर हो गई थी । नयना का सपना आंसू बन नयनों से बहने लगा जो कभी थमा नहीं । तभी मामा ने एक दिन घर आकर उसकी मां से कहा- “बड़ी मुश्किल से ढाई लाख में माना.. तीन से नीचे तो बाप मान ही नहीं रहा था..!” आंसू बहाती नयना अपने तीन छोटे भाई-बहनों को पीछे रोता छोड़ एक दिन गांधी नगर से सुभाष चौक आ गई थी बदकिस्मती से ! जहां मीडिया रिपोर्टर बनने के सपने और उसकी सोच को किरान ऑपरेटर के पैरों तले बार बार कुचला गया-मसला गया ! दूब घास की तरह जब भी फुनगने की कोशिश की उसने, बियर बोतल मुंह में डाल दिया जाता और वह चित हो जाती थी ।

जी हां, नयना का पति गुजरात में एक कंपनी में किरान ऑपरेटर का काम करता था । करोना लॉकडाउन में उस कंपनी में भी ताला लग गया । और एक दिन कंपनी ने  सभी को साफ जवाब दे दिया-” काम दुबारा शुरू होगा तो सूचना दी जाएगी..!”

आज सुबह जैसे ही वे लोग बाजार चौक में बस से उतरे प्रशासन ने सेंटर में भेज दिया । इसी की सूचना सुबह नयना मां को दे रही थी । उधर-

नागेन्द्र को देख मुस्कुराते नयना को पीछे से उसके पति रोहित ने देख लिया था तभी वह चीख कर पुकारा था-” नयना.अ आ..!”

अरे बाबा..! इतना बड़ा शकाहा ! नयना सांस कैसे लेती होगी ? नागेन्द्र ने मन ही मन सोचा था ।

-” सुबह बाहर उसे देख क्या दांत निपोर रही थी..?”

रात को रोहित ने नयना से पूछा था ।

” दांत निपोर रही थी.. मां से बात कर रही थी ..!” रोहित की बात नयना को नागवार गुजरी थी ।

” अंदर में बात नहीं कर सकती थी..?”

” अंदर नेटवर्क नहीं आ रहा था..!”

” मनिषा कोईराला बनने की कोशिश मत करना ।”

” तुम भी नाना पाटेकर मत बनो…!”

” आज बहुत जुबान चल रहा है..!”

” यह तुम्हारा गुजरात का चार फीट वाला खोली नहीं- अपना गांव घर है..!”

” तेरी जुबान को..!” रोहित नयना पर लपका था

” यहां मारोगे तो मैं चुप नहीं रहूंगी…!” नयना भी तन गई थी ‌। रोहित कसमसा कर रह गया था ।

रात को खाना खाकर नागेन्द्र जल्द सो गया । दिन में उसने अपने कई दोस्तों से बात की परन्तु घर में किसी को फोन नहीं किया । अगर उन लोगों को उसकी कोई परवाह नहीं तो वो क्यों किसी का परवाह करे ! उसने सोचा और इसी के साथ वह सो गया । करवटें बदल कर आंखें बंद कर ली तो लगा नयना आकर उसके सामने खड़ी हो गई.है.!

” तुम मेरे कमरे में कैसे चली आई..?”

” मैं तो तुम्हारे जीवन में भी आना चाहती हूं..!” उसने कहा ।

” वापस लौट जाओ, तुम्हारी शादी हो चुकी है, तुम्हारे साथ तुम्हारा पति है ।  हमारा मेल नहीं हो सकता है…!”

” शादी नहीं, मेरे जीवन की बरबादी हुई है । ”

नागेन्द्र ने फिर करवट बदला-” तुम अभी तक गयी नहीं है…!” आंख मलते नागेन्द्र बोला-” जाओ, नहीं तो पति ढूंढता यहां चला आयेगा..!”

” मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए…!” वह आगे बढ़ी ।

नागेन्द्र उठ बैठा । कमरे में अंधेरा था । बिजली कटी हुई थी । आंख मलते वह फिर सो गया ।

सुबह नागेन्द्र जल्दी उठ गया था । रात की कोई बात उसे याद नहीं थी । शौच से निवृत्त होकर पुनः कमरे में जाकर लेट गया ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌आंख बंद किए ऊपर छत की ओर देखने लगा इतने में दरवाजे पर एक हल्की सी दस्तक हुई और अगले ही पल नयना कमरे में दाखिल हो गई । उसके हाथ में एक मैगजीन थी” गृह शोभा ” उसने उसे नागेन्द्र की छाती पर रख दी और टेबल पर रखी उसकी ” सरिता ” लेकर वह वापस अपने कमरे में आ गई थी । नागेन्द्र को सरिता पढ़ते उसने दिन को ही  देख ली थी जब वह बाहर बैंच पर बैठा पढ़ रहा था । पर यह नागेन्द्र को नहीं पता था ।

रोहित अब भी सोया हुआ था । अब भी उसे खैनी की तरह जैनी की तलब हो रही थी शायद । इसको लेकर रात को भी पति-पत्नी में काफी मुंह नोचा-नाची हुई थी-” यहां हरगिज यह सब नहीं होगा. हर जगह तुम्हारी मनमानी नहीं चलेगी..!” नयना ने कहा और चादर बिछा  कोने में अलग सो गई ।

पर रोहित रूका कहां। लड़खड़ाते वह आगे बढ़ा । और नयना के ऊपर की चादर एक झटके में खींच कर दूर फेंक दिया-” काहे नहीं चलेगी, तुम मेरी पत्नी है.. हर जगह मेरी चलेगी..!” वह उठना चाही, पर उठ न सकी । रोहित ने नयना को अजगर की तरह दबोच लिया । वह घूट कर-कसमशा कर रह गई । उसे आज पूरी तरह महसूस हो गया कि वह किसी इंसान के साथ नहीं बल्कि एक दरिंदे पशु के साथ रह रही है जिसे पत्नी की भावनाओं की कोई समझ-कोई कद्र नहीं है और जो इस वक्त उस पर सवार है वह उसका पति नहीं, एक जानवर है-दोपाया जानवर !

हां इस बात पर वह राहत महसूस कर रही थी कि आज रोहित उसके मुंह में बियर का बोतल डाल नहीं सका था जैसे ही उसने बियर बोतल आगे बढ़ाया, नयना ने एक झटके में रोहित के हाथ से बोतल छीन कोने की तरफ फेंक दी । बोतल टूटने की आवाज सुन उनकी सोई एक वर्ष की नीना  चीख उठी-” मां..अ.अ .!”  लेकिन रोहित पर इस चीख का कोई असर नहीं हुआ । तभी नयना रोहित की मजबूत पकड़ में आ गई थी और इसके साथ ही रोहित उसके साथ दरिंदगी पर उतर आया था। शादी के बाद ऐसा पहली बार हो रहा था जब रोहित नयना को बियर नहीं पिला पाया था ।

दोपहर को अचानक नागेन्द्र का मोबाइल बज उठा-” कौन..!” नागेन्द्र ने पूछा

” नयना.. तुम्हारी स्कूल पड़ोसन..!”

” तुमको मेरा नम्बर कहां से मिला..?”

” तुम्हारी सरिता से..!”

” तभी कहूं पत्रिका गई कहां.पर यह हुआ कैसे..?”

” याद करो सुबह जब जागते हुए तुम आंख बंद किए ऊपर छत की ओर ताकते सपने देख रहा था.सपने में मैं ही थी न…?”

” काहे फोन किया ..?” नागेन्द्र ने विषय बदल दिया ” मरद छोड़कर भाग गया क्या ..?”

” धीरे बोल वो  कमीना बाहर है..और यह बताओ तुम शादी- सुदा हो या कुंवारे…?”

” क्यों.. फिर किसी को बकरा बनाने की सोच रही है क्या ?”

” नहीं, मै तुम्हारे जीवन में आना चाहती हूं..!”

” मै शादी-शुदा हूं और मेरे घर में चार चार पत्नियां पहले से मौजूद हैं !”

” पांचवीं मुझे बना लो न यार ! द्रोपदी की तरह तुम्हे खूब प्यार और सेवा करूंगी…!”

” और तुम्हारे उस मरद का क्या होगा, जो तुम्हारे गले में लंगूर की तरह लटका हुआ है ?”

” वह मरद नहीं..बैल है और गाय बनकर मै उसके साथ जीवन गुजार नहीं पाऊंगी..!”

” परन्तु तुम तो एक बच्ची की मां भी हो.उसका क्या होगा..?”

” उस कमीने ने बियर पिला-पिला कर मुझे मां बना दिया है..पर मै बाईस की हूं..!”

” अच्छा..!”

” अच्छा क्या..! मै इसके साथ घूट-घूट कर जी रही हूं और तुम्हें मेरी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है, मै इसकी कैद से आजाद होना चाहती हूं और तुम्हारे साथ एक आजाद जीवन जीना चाहती हूं..!”

” पर मै भी तो एक मरद ही हूं..!”

” पर तुम कभी बैल नहीं बन सकते हो यह मेरा दिल कहता है ।” नयना का स्वर लरज उठा था-” मुझे प्यार करने वाला पति चाहिए..खेत जोतने वाला बैल नहीं.हाय री मेरी किस्मत…..!” और नयना रो पड़ी थी ।

नागेन्द्र का मन किया दौड़ जाकर नयना को गले से लगा ले, बाहर निकला भी लेकिन सामने से रोहित आता दिख गया था ।

” रखती हूं..दुष्ट दानव आ रहा है..!” फोन कट गया था ।

उस दिन के बाद जब लगातार तीन दिन तक नयना नजर नहीं आई औ उसका फोन स्वीच ऑफ आने लगा और उसका पति रोहित कमरे के बाहर चौकीदार की तरह बैठा नजर आने लगा तो नागेन्द्र को समझने में देर नहीं लगी कि नयना बंधक बना ली गई है वह सचमुच का नरक का जीवन जी रही है, और उसे उस जीवन से आजाद कराना होगा पर कैसे ? यह बड़ा सवाल नागेन्द्र के सामने आकर खड़ा हो गया था। नागेन्द्र को चिंता सताने लगी कहीं यह जल्लाद उसे बांध कर यातनाएं तो नहीं दे रहा है ? कैसे पता करेगा । उसने सेंटर संचालक से मदद लेने की सोची । मिला भी उसे । नयना को लेकर आशंका जताई । सेंटर संचालक जाकर रोहित से मिला और उसकी पत्नी से मिलने की बात कही तो वह अकबकाने सा लगा ‌। दरवाज़ा खोलने के नाम पर आना कानी करने लगा-बहाने बतियाने लगा । संचालक का संदेह  बढ़ा । वह आगे बढ़ा -” आप दरवाजा खोलिए..!”उसने जोर दिया । मजबूरन रोहित को दरवाजा खोलना पड़ा । नागेन्द्र का अंदाजा सही निकला । नयना का हाथ-पैर सन् की रस्सी से कस कर बंधा हुआ था और उसके बाल बिखरे हुए थे । वह एक कोने में उठंग कर बैठी हुई थी । दृश्य बेहद अमानवीय और आपत्ति जनक थी -” तुम आदमी हो कि जल्लाद ? कोई अपनी पत्नी को इस तरह यातनाएं देता है ? नागेन्द्र का अनुमान सही निकला ! अरे ! पत्नी है प्यार से रखो..पशु की तरह बांध रखा है.. ठहरो मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं…!”

रोहित ने जल्दी से नयना के सभी बंधन खोल दिये और बोला-” सर ! पुलिस को फोन मत कीजिए, अब ऐसा दुबारा नहीं करूंगा…!”

” तुम्हारा शक सही निकला ..!” लौट कर संचालक ने नागेन्द्र से कहा था-” इतनी सुन्दर बीवी और ऐसा पति ! जानवर की तरह पत्नी को बांध रखा था..!”

” कमीना पति है…!” नागेन्द्र काफी गुस्से में लगा ।

उस रात नागेन्द्र ठीक से सो नहीं सका । बार बार नयना का मासूम चेहरा सामने आकर खड़ा हो जाता और उसकी कही बातें कानों में गूंजने लगती-” मुझे प्यार करने वाला पति चाहिए-खेत जोतने वाला बैल नहीं..!”

अगले दिन रोहित और नागेन्द्र आमने-सामने हो गये । रोहित ने रास्ता रोकते हुए कहा-” नयना मेरी पत्नी है, तुम्हारी माशूका नहीं,उस पर डोरे डालना बंद करो..!”

” पत्नी है- गुलाम नहीं, प्यार से रखो न, कोई डोरे नहीं डालेगा..!”

” डालने की सोचना भी नहीं, मैं  तेली हूं किसी की देह से तेल भी निकाल सकता हूं…!”

” यहां भी कोई जनऊ पहन कर नहीं बैठा है । मैं भी तेलियों का बाप हूं। अपनी हद में रहो..!”

” देख लूंगा..!” इसके साथ रोहित अपने कमरे की ओर बढ़ गया था ।

” शौक से…!”  नागेन्द्र ने कहा था ।

दो दिन बाद नयना पर नागेन्द्र की नजर पड़ी । चेहरे की रौनक पर जैसे किसी ने गोबर पोत दिया था। आंखें गीली थी और होंठ पंख विहिन फड़फड़ाते कबूतर सा कर रहा था । नहाकर आई थी । बालों से पानी टपक रहा था । वो भींगे कपड़ों को रस्सी पर डाले जा रही थी और बैंच पर बैठे नागेन्द्र को देखे भी जा रही थी । होंठों से मुस्कान गायब थी । दर्द का एक शैलाब  लिए कमरे में समा गई थी । यह देख नागेन्द्र के सीने में एक दर्द सा उठा । वो भी अंदर जाकर लेट गया । आंखों के सामने बार बार नयना का चेहरा घूमने लगा था।

सेंटर में चौदह दिन का समय कल सभी का समाप्त हो रहा था ।

सुबह नागेन्द्र को तथा अन्य दो को छुट्टी मिल जाएगी और शाम को नयना भी  पति के साथ अपने घर चली जाएगी । पर नागेन्द्र कहां जायेगा ? इस सवाल ने उसे अभी से ही घेरना शुरू कर दिया था । सेंटर में उससे मिलने घर के किसी सदस्य के नहीं आने से वह काफी खफा था । पर उसके सामने यक्ष सवाल था फिर वह जायेगा कहां ? नागपुर अभी लौट जाना संभव नहीं था ! घर लौटने पर  ऐसा दिन देखना पड़ेगा अगर वह जानता तो नागपुर से आता ही नहीं। अब जबकि घर तक पहुंच ही गया है तो जमाने को कुछ दिखाना तो पड़ेगा ..! इस बिंदु पर आकर उसने सोचना बंद कर दिया और निढाल सो गया ..!

लेकिन सेंटर में पहली रात की तरह आज भी उसकी आंखों से नींद गायब थी । रात के ग्यारह बज चुके थे और बारह बजने में दस मिनट बाकी था तभी उसका मोबाइल बज उठा । देखा नम्बर वही था -” क्या इस जीवन में हम मिल नहीं सकते ? हमारा मिलन अधूरा रह जायेगा ? मैं आपके साथ जीना चाहती थी, लेकिन  किस्मत को शायद यह मंजूर नहीं है..यह मेरा और मेरे जीवन का आखरी कॉल समझ लेना….!” और फोन डिस्कनेक्ट हो गया था ।

नागेन्द्र अकबका उठा । नींद तो पहले से गायब थी । अब लगता है जान भी जाएगी । एक झटके में वह कमरे से निकल आया । बाहर कोई नहीं था । बिल्कुल सन्नाटा पसरा हुआ था । तो क्या नयना कमरे से बोल रही थी ? फिर रोहित कहां है इस वक्त ? तभी स्कूल गेट से रोहित अंदर आते दिख गया -लडखडाता -आगे बढ़ता हुआ…

नागेन्द्र सुबह सोकर उठा,हाथ में साबुन-तौलिया-ब्रास लिए बाहर निकला तो मौसम बड़ा सुहाना लगा । स्कूल के आंगन के गुंलाची पेड़ से आती फूलों की खुशबू से सांसे तरोताजा हो उठी और मन  खुशी से उसका गा उठा-”  चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो ..!” गीत गुनगुनाता सीधे वह बॉथरूम में जा घूसा । थोड़ी देर बाद फ्रेस होकर लौटा । देखा- आंखों में सवाल और चेहरे पर खामोशी ओढ़े नयना कमरे के बाहर खड़ी है । एक नज़र उसने उस पर डाली और कुछ सोचता हुआ अपने कमरे में चला गया ।

कोई आधा घंटा बाद नागेन्द्र जाने को तैयार बाहर बेंच पर आ बैठा। संचालक को कमरे की चाबी सौंप निकल लेना है । यही उसके मन में था । जाना कहां है यह अभी उसने तय नहीं किया था ।  तभी रोहित अपने कमरे से बाहर निकला और वह भी सीधे बॉथरूम की ओर चला गया । इतने में नागेन्द्र अंदर गया और मोबाइल उठाया-” चौक के शिव मंदिर में मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा ..!” नागेन्द्र ने निर्णय ले चुका था

बाहर निकला तो सेंटर संचालक आता दिखा । उसने अपना कैरी बैग उठाया और चल दिया ।

थोड़ी देर बाद नयना भी बॉथरूम से फ्रेस होकर आ गई और क्रीम रंग की सलवार सूट पहन गले में आसमानी रंग की दुपट्टा डाली तो रोहित ने टोक दिया-” यह सुबह सुबह कहां जाने की सोच ली…?”

” बाजार चौक का शिव मंदिर जा रही हूं.. पूजा करने..!”

” शिव-पार्वती से क्या मांगोगी कि मुझ जैसा पति..!”

” हर जन्म में मिले..!” नयना ने बात पूरी की ।

” मैं जानता हूं मै तुम्हे पसंद नहीं हूं । मेरी हरकतों से तुमको बहुत तकलीफ़ होती है.मै पति कम पशु ज्यादा लगता हूं..!”

” छोड़ो, सुबह सुबह ये सब बातें क्यों लेकर बैठ गया.. और एक बात याद रखना..नीना का बाप तुम्हीं हो..!” नयना ने रोहित को बीच में ही रोकते हुए कहा” नीना सो रही है, उसे जगाना नहीं.और जागी तो रूलाना नहीं..!” इसके साथ ही हैंड बैग उठा नयना कमरे से बाहर निकल गई ।

शिव मंदिर के बाहर सीढ़ियों पर बैठा नागेन्द्र आधे घंटे से उसका इंतज़ार कर रहा था । पर नयना का अभी तक कोई पता नहीं था । एक पल के लिए उसे लगा नयना का पति उसे अकेले आने नहीं देगा ! क्या पता नयना का मन भी बदल गया हो या फिर मजाक कर रही हो,  इस मामले में आज की सभी लड़कियां पीएच.डी की होती है.!

तभी सीढ़ियों से सटकर एक ऑटो रिक्शा आकर रूकी । नयना को उतरते देख नागेन्द्र की आंखें चमक उठी ! आगे बढ़कर उसने नयना का हाथ थाम चूम लिया, फिर दोनो मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे …!

काफी समय बीत गया । नयना सेंटर में वापस नहीं लौटी और मोबाइल उसका स्वीच ऑफ आने लगा तो रोहित को समझते देर नहीं लगी कि नागेन्द्र नयना को भगा ले गया । वह थाने जाने की सोच ही रहा था कि उसका मोबाइल  बज उठा ” आप रोहित साव बोल रहे है..ठीक है..मै थाने का बड़ा बाबू बोल रहा हूं.आप जल्दी से थाने में पहुंचिये..!”

रोहित आनन फानन में थाने पहुंचा  ।

“  आपकी पत्नी नयना- यही नाम है न पत्नी की…?

“ जी हां सर …!

“ उन्होंने  कुछ ही देर पहले थाने में आकर एक लिखित दरखास्त जमा कर गयी है, जिसमें उसने साफ तौर पर तुम्हारी सारी करतूतों का भंडाफोड़ करते हुए लिखा है कि” रोहित साव आज से मेरा पति नहीं रहा, थाने आयेगा तो बता दीजियेगा – बड़ा बाबू ने रोहित पर बज्रपात सा प्रहार करते हुए कहा था- हालांकि चाहती तो नारी प्रताड़ना के जुर्म में तुम्हें वह जेल भी भेजवा सकती थी । लेकिन तुमसे अलग होना ही उसने बेहतर समझा ! अब तुम भी जा सकता है …! बडा बाबू ने   रोहित खड़े खड़े  झाड़ दिया था ।

थाने से लतियाए रोहित मन में अंगार लिए  उन दोनों को ढूंढने निकल पड़ा था । कहीं दोनों मिल जाए तो जिंदा चबा जाए,उसका हाव-भाव बता रहा था ।

बाहर सड़क पर कोर्ट जाने के वास्ते बस के इंतजार में खड़े थाने के हवलदार ने तभी उसे बताया कि चास जाने वाली बस में चढ़ते हुए उसने उन दोनों को देखा है । अकबकाये रोहित भी हवलदार के साथ एक दूसरी बस में सवार हो गया था ।

चास फैमिली कोर्ट के बाहर रोहित पागलों की भांति पत्नी नयना को, होटल में,चाय दुकानों में और वकीलों की भीड़ में ढूंढता फिर रहा था । तभी दूर का दृश्य देख वह आग बबूला सा हो उठा था । चास फैमिली कोर्ट के चर्चित सिनियर वकील किशोर बाबू के सामने दोनों को बैठे किसी बात पर चर्चा करते पाया । रोहित दूर से ही चिल्ला उठा था “  कुतिया-कमीनी, गैर लड़के के साथ तुम यहां बैठी हो, शरम नहीं आती…!””

“अरे, इसे पकड़ो.. कौन है..?” किशोर बाबू तमतमा उठ खड़े हो गये थे।

“चिल्लाने दीजिए- सर बकने दीजिए, यही है, मेरे पूर्व पति रोहित साव..!”

“वकील साहब, मेरी बात सुनिए यह मेरी पत्नी है. कोरेटेन.. सेंटर से बोल कर निकली थी कि पूजा करने जा रही हूं..!”

“इसने कोई ग़लत नहीं कहा, प्रेम भी तो एक पूजा है, परन्तु तुझ जैसे शराबी यह नहीं समझ सकता है,सुनो-नयना पहले तुम्हारी पत्नी थी, अब नहीं है, सुबह मंदिर में इन दोनों ने शादी कर ली और घंटा भर पहले कोर्ट मैरिज के लिए अर्जी दाखिल कर दी है इन्होंने, जिसे जज साहब ने फैसले के लिए मंजूर कर लिया है …! किशोर बाबू ने बड़े संयम से रोहित को समझाते हुए कहा-“  चाहती तो पत्नी प्रताड़ना के जूर्म में यह तुमको जेल भी भेजवा सकती थी पर ऐसा इसने नहीं किया । यह बालिग है, पढ़ी लिखी है, और सबसे बड़ी बात,यह अपनी मर्जी और मन पसंद जीवन जीना चाहती है । परसों सुनवाई का स्पेशल कोर्ट डेट है,आ जाना अपना पक्ष रखने के लिए ….!”

तभी रोहित अचानक से रोनी सूरत लिए नयना के सामने खड़ा हो कहने लगा-“  नयना जो कुछ हुआ सो हुआ । मुझे माफ़ कर दो, अब आगे से मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा । कभी तुम पर हाथ नहीं उठाऊंगा और न कभी मुंह में बियर बोतल डालूंगा । जो हुआ उसे भूल जाओ और घर चलो….!”

“कभी नहीं ! सब कुछ खत्म हो चुका है। तुम्हारे नाम का सिन्दूर आज सुबह ही धो डाली हूं । मैं एक भरपूर जीवन जीना चाहती हूं, परन्तु तुम्हारे साथ रहकर यह संभव नहीं था !”

“सोचो, नीना का क्या होगा, बिन मां वह मासूम कैसे रहेगी..?”

“वह तुम्हारी बेटी है, तुमने बियर बोतल से पैदा किया है अब पालो उसे…!”

“बहुत नौटंकी कर लिया तुमने,अब चल निकलो यहां से…!”  नागेन्द्र ने पहली बार मुंह खोला था। रोहित कसमसा कर रह गया था । पलडा नागेन्द्र का भारी था । हारे हुए जुआरी की तरह रोहित चल पड़ा था ।

“चाहो तो अपना पक्ष रखने परसों कोर्ट में आ जाना, अब तुम जा सकते हो ! “ वकील किशोर बाबू ने जाते हुए रोहित को पुनः याद दिलाया था   ।

रोहित ने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया, लगा  किसी बात को वह सुन नहीं रहा है । हताशा और निराशा में डूबे जब रोते-कल्पते रोहित कोर्ट परिसर से निकला तो नागेन्द्र के कहे शब्द कानों में गूंजने लगे थे- “मै तेलियों का बाप हूं..याद रखना..!

शाम को नागेन्द्र नयना को लिए घर पहुंचा था । जहां दिवानों की तरह बाप से बहस करते देखा गया ” तो तुम सबका यह आखरी फैसला है- नयना इस घर की बहू नहीं बन सकती- कितना दिन दरवाजे पर खड़े होकर इस तरह रोकोगे हमें ? कोई अमर होकर नहीं आया है .!” इसके साथ ही नागेन्द्र भीड़ को ठेलते नयना को लेकर एक बार फिर निकल पड़ा था ।

“अब हम जाएंगे कहां ..!” ऑटो रिक्शा में बैठे बैठे नयना बोल पड़ी ।

“बाबा महल ..!

“वह कहां है….? नयना का मासूम सवाल । नागेन्द्र ने कोई जवाब नहीं दिया। ऑटो रिक्शा बाजार चौक से ठीक पांच सौ गज दूरी पहले रूक गई । नयना पूछ बैठी ” ऑटो रूक क्यों गई..?”

“आओ-उतरो, हम  बाबा महल आ गये..!” नागेन्द्र ने नयना को गोद में उठा लिया और सीधे इकलौते घर के इकलौते कमरे के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया । नयना चहक उठी- ” यह हमारा घर है…!

“घर नहीं, यही हमारा बाबा महल है..!” नागेन्द्र ने बैग से चाबी निकाली, कमरे का ताला खोला फिर बोला – “इसे हमारे बाबा ने बनाया था, आज पोते को काम आया । बाबा खैनी- बीड़ी सिगरेट बेचा करते थे, नागपुर जाने के पहले मै लोगों को चुना लगाता, पान खिलाता था, अब तुम यहां खाना बनाओगे और प्रेम से हम दोनों खायेंगे ! कैसा लगा हमारा छोटा सा बाबा प्रेम महल …!”

“शानदार ! छोटा है पर चलेगा..!” तभी नयना कुछ सोच में पड़ गई । नागेन्द्र तुरंत भांप गया । कहा -” जानेमन, चिंता न करो, पंद्रह दिन में शौचालय बन कर तैयार हो जाएगा..!

” ओह मेरे राजा. तुम कितने स्मार्ट हो, दिल की पुकार सुन लेते हो..!”और नयना नागेन्द्र की बाहों में झूल गई थी…..!

समाप्त

*श्यामल बिहारी महतो

जन्म: पन्द्रह फरवरी उन्नीस सौ उन्हतर मुंगो ग्राम में बोकारो जिला झारखंड में शिक्षा:स्नातक प्रकाशन: बहेलियों के बीच कहानी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित तथा अन्य दो कहानी संग्रह बिजनेस और लतखोर प्रकाशित और कोयला का फूल उपन्यास प्रकाशित पांचवीं प्रेस में संप्रति: तारमी कोलियरी सीसीएल में कार्मिक विभाग में वरीय लिपिक स्पेशल ग्रेड पद पर कार्यरत और मजदूर यूनियन में सक्रिय