दोहे
कदमों में नित जोश हो ,कभी न टूटे आस ।
स्वेद कणों की गंध का, जिसको हो विश्वास ।।
यौवन पर मत रीझना , चार दिनों का खेल ।
निकल गए तो पास हैं , फिसल गए तो फेल ।।
मुख के बाहर फूल हैं , या फिर भीतर खार ।
भाषा के व्यवहार से, पता चले संस्कार ।।
मुश्किल राह जीवन की ,हिम्मत से कर पार ।
वीर भोग्या वसुंधरा ,नमन करे संसार ।।
रात पूस की सिसकती, गुमसुम मौन मचान ।
हल्कू जैसा आज भी , जीता देख किसान ।।
विरही मन ने जब भरी , लंबी शीतल आह ।
छत पर बैठी चांदनी , सुनकर बोली वाह ।।
अपनी अपनी धूप है , अपनी अपनी छांव ।
सबके अपने सफर हैं , सबके अपने ठांव ।।
सौहार्द की गलबहियां, प्यार धुलाता पांव ।
नहीं रही वो हस्तियां ,नहीं रहे वो गांव ।।
हर पगडंडी मौन है , और खेत खलिहान ।
कृषि छोड़ मजदूर हुआ , जब से यहां किसान।।
अपने भीतर रख सदा ,उजला -प्रेम -उजास ।
राहें रोशन हों सदा , मिटे न जीवन- आस।।
इक पल सुख की छांव है ,इक पल दुख की धूप ।
जीवन के ये रंग हैं ,जीवन के ये रूप ।।
मधु बताकर बेच रही, यह दुनिया हलाहल ।
देख परख कर क्रय करें , जग का कपट ओ छल ।।
— अशोक दर्द