मोहक मुस्कान!
मार्केट जाते हुए रोज कमली दिखाई देती थी. खुले मैदान में चूल्हे पर बटलोई में दाल पक रही होती और उसके मुख पर मोहक मुस्कान! इतनी कठिनाइयों में भी!
मोहक मुस्कान मीनल की भी भुलाई जा सकने वाली नहीं है.
मीनल अपने कमरे में सोने गई थी. बगल वाले कमरे से वार्तालाप की आवाज आई-
“मेरी बदली पूना हो गई है. वहां रहने के लिए जो कमरा मिला है, वह इतना बड़ा नहीं है, कि हम दोनों भी रह सकें और मां भी. ऐसा करते हैं, मां को वृद्धाश्रम में डाल देते हैं.”
मां की हम भी निकल गई और तम भी! “एक साल ही हुआ है शादी को, पता नहीं बहू ने कैसे पट्टू डाल दिए हैं बेटे पर!” मायूस मन अक्सर ऐसा ही तो सोचा करता है न!
अब बारी थी बहू के बोलने की, उसके कान खड़े हो गए.
“ऐसा है जी, मां जी को छोड़कर मैं तो कहीं नहीं जा सकती, आप अकेले जाइए!”
”सच में यही कह रही है बहू?” उसके मन ने आशंका खड़ी की!
“हमें पैसों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. मैं पढ़ी-लिखी हूं, ट्यूशन्स कर लूंगी. वैसे भी आप तो कहते हो न कि मां जी ने बर्तन-पोंछा करके आपको पाला है!”
मीनल के नेत्रों से अंसुअन धार निकल रही थी. न जाने क्यों?
“जब बड़ा कमरा मिल जाए तो हम दोनों को बुला लीजिएगा.”
मोहक मुस्कान से मीनल का चेहरा खिल गया. मन में संतोष-सुमन की खुशबू जो महक रही थी!
कमली की मोहक मुस्कान का राज मुझे समझ में आ गया था!