बिन्दिया
तेरी बिन्दिया करती है इशारा
बार बार क्यूँ हमको पुकारा
ये प्रेम की क्या है मूक आमंत्रण
या प्यार का महका है आँगन
सूरज की किरणे लाली चमकाये
बिन्दिया माथे की शोभा बढ़ाये
तेरे होठों पे छाई है मधुर मुस्कान
झुमका डोले तेरे प्यारा ले नाम
पीपल की छाया है बुलाता
सौरभ महुवा वन को महकाता
चलो प्यार की पींगे हम बढ़ायें
एक दूजै में हम खो जायें
चन्दा रे तुँ चॉदनी को बिखेरना
बादल की रानी तुँ भी बरसना
भीग जाये हम दोनों ही प्राणी
प्रेम दरिया है जानी पहचानी
आओ गुलशन में एक बात बतायें
तारों की झिलमिल सेहरा सजायें
चार दिन की ये है जिन्दगानी
महक जा रे तुम रात की रानी
— उदय किशोर साह