ग़ज़ल
अस्ल होता वही है बड़ा आदमी।
सबकी खातिर करे जो दुआ आदमी।
तंग करता फिरे दायरा आदमी।
हर समय सोचता फायदा आदमी।
दूसरों की बुराई करे हर जगह,
यूँ भी बनता कहीं है भला आदमी।
लोक सेवा जो करता रहे हर समय,
याद करता उसी को सदा आदमी।
बात बे बात कर के खड़ा मसअला,
क्यूँ बढ़ाता फिरे फासला आदमी।
— हमीद कानपुरी