एक मुद्दत से ना कोई खत है ना कोई पैगाम है,
खून-ए-दिल आंखों से टपके ना कोई पैगाम है।
मुझे अब ना चैन है ना आराम क्या अर्ज करूं?
जज़्बे का परिंदा क्यों न तड़पे ना कोई पैगाम है।
थरथराती डूबती शाम का अंजाम लिए फिरते रहे,
तारों की निगाह नही चमकी ना कोई पैगाम है।
दिल अब भी गुदाज़ है धड़कन में सो-ओ-साज़ है,
दर्द अफसाना गुनगुनाता रहा ना कोई पैगाम है।
टूटी हुई कब्र के कतबे पे लिखा है किसका नाम,
ज़िंदगी एक नामा-ए-गुमनाम के यही पैगाम है।
— बिजल जगड